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Saturday 26 August 2017

विपासना की शुरुआत

विपासना शिविर में हर तरह के लोग मसलन देशी और फिरंगी, अलग अलग धर्म के और अलग अलग आयु वर्ग के नज़र आये. कुछ को अंग्रेजी नहीं आती और कुछ को हिंदी. खैर एक दूसरे की मदद से फॉर्म भरकर पंजीकरण की कारवाई हो जाती है. पंजीकरण के बाद कमरा नंबर बता दिए गए. पर रुकिए सबसे जरूरी काम तो अब करना है. एक पोटली में अपना पर्स, मोबाइल, चाबियाँ, कैश जमा करने हैं और उस पोटली पर नाम की पर्ची चिपकानी है. पोटली जमा और आप खाली जेब याने निहत्थे! यूँ समझिये कि आपने दस दिन के लिए गृह त्याग दिया.

आश्रम में साधकों के लिए कोई मूर्ती, मंदिर, टीवी, अखबार या इन्टरनेट की सुविधा नहीं है. कमरों के बल्ब जीरो वाट के हैं तो आप कुछ पढ़ भी नहीं सकते. पहली मीटिंग में सभी को बता दिया जाता है कि आपस में बात ना करें, एक दूसरे को देखें नहीं. चार बजे सुबह की घंटी बजेगी तो बिस्तर छोड़ दें और साढ़े चार बजे मैडिटेशन हॉल में अपना स्थान ग्रहण करें. पद्मासन, या आलथी पालथी या चौकड़ी लगाकर आसन पर बैठें और सांस को देखने का प्रयास करें अभ्यास करें.

इससे आसान क्या बात हो सकती है कि आप आराम से बैठकर सांस को देख रहे हैं बहुत सिंपल - ना सांस को घटाना है, ना सांस को बढ़ाना है बस केवल देखना है. सांस चल रही है और आप देख रहे हैं. आप कितनी देर तक ये कारवाई कर सकेंगे? मुझे तो शायद दो तीन मिनट सांस पर ध्यान रहा होगा और फिर ध्यान हट कर दूसरी बातों में लग गया. माथे पर लगातार एक विचारों की विडियो चलती रहती है और ध्यान उसमें चला गया. मन को खींच कर फिर वापिस सांस पर लाया तो दो चार मिनट सांस पर रहा और फिर भटक गया! ये सिलसिला पूरा दिन ही जारी रहा. इतनी सरल सी बात पर काम करना कितना कठिन है.

ध्यान पर इन्टरनेट और किताबों में बहुत सामग्री मिलेगी. ध्यान लगाने के लिए प्राचीन काल से ही श्वास या सांस का एक महत्वपूर्ण आधार रहा है. तन, मन और श्वास का सामंजस्य या synchronisation जरूरी है. वैसे भी श्वास है तो जीवन है और श्वास रुका तो छुट्टी! सांस पर देर तक नियंत्रण पा लेना या सांस पर देर तक नज़र रख पाना एक तरह से प्रारम्भिक कदम है जो आगे ध्यान और समाधि लगाने में सहायक है. ध्यान देने वाली बात है कि ध्यान शब्द के माने attention और meditation दोनों ही तरीके से लिए जाते हैं सन्दर्भ को ध्यान में रखना होगा. दूसरी बात यहाँ मन शब्द का अर्थ है चित्त या mind या दिमाग.

प्राचीन काल में सांस पर ध्यान लगाने की तीन विधियाँ प्रचलित थीं - प्राणायाम, आनापान सति और समाधि. प्राणायाम अष्टांग योग का एक महत्वपूर्ण अंग है. अष्टांग योग के आठ अंग हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि. योगाभ्यास में प्राणायाम कई प्रकार से किया जाता है जैसे की अनुलोम विलोम, कपाल भाति, भस्त्रिका, भ्रामरी गुंजन आदि. प्राणायाम की इन क्रियाओं से सांस को स्थगित करना और नियंत्रण में लाना आसान हो जाता है. फलस्वरूप ध्यान लगाने में आसानी हो जाती है. योग में ध्यान का मतलब इस तरह से कहा गया है की शरीर स्थिर और मन शांत होने के बाद मन के विचारों का शून्य हो जाना.

आनापान सति विधि में सांस पर नियंत्रण की बात नहीं कही गई है. स्वाभाविक रूप से जो सांस आ रहा है या जा रहा है उसके प्रति जागरूक रहना है. सांस को बढ़ाने या घटाने की कोशिश नहीं करनी है. हो सकता है कि सांस एक नासिका से आए या दोनों नासिकाओं से, सांस छोटी हो या लम्बी, ठंडी आए या गर्म पर हमें किसी भी दशा में सांस से छेड़ छाड़ नहीं करनी है बल्कि उसे केवल जानना है, उसके प्रति जागरूक रहना है या यूँ कहिये कि सांस के प्रति चैतन्य रहना है. आनापान सति की ये विधि गौतम बुद्ध के बताए मार्ग का प्रारम्भिक पर बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है.

सांस को खींच कर अंदर भर लेना और देर तक रोके रखना( आतंरिक कुम्भक ) या फिर सांस को बाहर निकाल कर देर तक सांस ना लेना( बाहरी कुम्भक ) बहुत ही कठिन है पर इस विधि से भी ध्यान और समाधि लगाने का जिक्र कई ग्रंथों में हुआ है.

विपासना का पहला दिन सांस को देखने में ही गुज़रा. बीच बीच में नाश्ते या खाने या शाम की चाय के लिए छुट्टी मिली पर उसके अलावा एक ही काम था बैठना और सांस पर ध्यान देना. शाम सात बजे के बाद खाना नहीं मिलता है. शाम को लगभग एक घंटे का गोयनका जी का विडियो चलाया जाता है जिसमें आज की गई कारवाई से उठे प्रश्न और विचारों की समीक्षा की जाती है और अगले दिन की कारवाई की जानकारी भी दी जाती है. दिन में कोई अलग से लेक्चर नहीं होता है. पर आचार्य हॉल में मौजूद रहते हैं उनसे ब्रेक के दौरान अलग से बात की जा सकती है.

सारा दिन एक ही तरीके से बैठने से कमर, कंधे, गर्दन, एड़ियां और घुटने दुखने लगे. थोड़ा बहुत हिलने से कुछ मिनटों के लिए आराम मिलता पर फिर थकावट और दर्द शुरू हो जाता. इस दौरान एक बात जरूर नोटिस की कि अगर ध्यान सांसों पर रहता है तो दर्द भूल जाता है. जैसे ही सांसों से ध्यान हटता है तुरंत दर्द याद आ जाता है और ऐसा लगता है कि दर्द बढ़ गया है. दर्द से मन को खींच कर अगर वापिस सांस पर ले आएं तो दर्द घटा हुआ महसूस होता है या गायब ही हो जाता है. मन की इस स्थिति पर विचार करें कि ऐसा क्यूँ होता है? ये आगे चलकर बहुत काम आएगा.

नोट: जिज्ञासा -वश गौतम बुद्ध का बताया मार्ग समझने की कोशिश कर रहा हूँ. भूल-चूक के लिए क्षमा 


सबका मंगल होए 



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