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Saturday 27 May 2017

हरिद्वार पर फोटो-ब्लॉग - 3/3

समुद्र मंथन के बाद अमृत का घड़ा लेकर गरुड़ ने देवलोक की ओर उड़ान भरी तो अमृत की कुछ बूँदें छलक कर हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नासिक में गिरीं. इससे हरिद्वार की मान्यता जानी जा सकती है. शिवालिक पहाड़ियों और गंगा तट के बीच बसा तीर्थ हरिद्वार, दिल्ली से 225 किमी दूर है. समुद्र तल से इसकी ऊँचाई लगभग 250 मीटर है. यहाँ का तापमान मौसम के अनुसार 5 से 40 डिग्री तक जा सकता है. सितम्बर से अप्रैल तक घूमने के लिए अच्छा मौसम है. हर तरह की धर्मशालाएं और होटल यहाँ उपलब्ध हैं. तीर्थ होने के कारण बारहों महीने यात्रियों का आना जाना लगा रहता है.

गंगा अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से शुरू होती है और लगभग 250 किमी की पहाड़ी यात्रा करके हरिद्वार पहुँचती है. यहाँ से गंगा की मैदानी यात्रा शुरू हो जाती है. इसीलिए हरिद्वार का एक और नाम है गंगाद्वार. पुराने समय में यहाँ कपिल ऋषि ने तपस्या की थी इसलिए हरिद्वार को कपिलस्थान भी कहा गया है. एक और नाम मायापुरी भी पुराने समय में प्रचलित रहा है.

हरिद्वार के नाम की एक और रोचक जानकारी मिली कि हर हर महादेव याने शिव भक्त इसे हरद्वार कहते हैं. जबकि हरि याने विष्णु भक्त इस स्थान को हरिद्वार कहते हैं.

उत्तराखंड के चार धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा का द्वार हरिद्वार ही है. हरिद्वार का सबसे पवित्र और प्रसिद्द घाट है हर की पौड़ी( या हर की पैड़ी ). कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तहरी ने यहाँ गंगा तट पर तपस्या की थी. राजा विक्रमादित्य ने उनकी याद में ईसा पूर्व पहली शताब्दी में ये घाट बनवाया था जो कालान्तर में हर की पौड़ी कहलाया.

हर की पौड़ी की शाम की आरती बड़ी आकर्षक लगती है. साथ ही घाट पर 24 घंटे का मेला ही लगा रहता है. मुंडन भी यहीं है, पूजा पाठ भी और अस्थि प्रवाह भी. गंगा सब कुछ समेट लेती है. दिल्ली, बिहार, राजस्थान, गुजरात, बंगाल और यहाँ तक की दक्षिण भारत से भी भक्तगण आते रहते हैं. बच्चे, बूढ़े और जवान, पण्डे, साधू संत, बहरुपिए, जेबकतरे, मांगने वाले, बेचने वाले, तरह तरह के कपड़े, तरह तरह के चेहरे याने पूरी मानवता का दर्शन हर की पौड़ी पर हो जाता है.

यहाँ बहुत से फोटो लिए जिनमें से तीसरा और अंतिम भाग प्रस्तुत हैं:

पहला भाग इस लिंक पर उपलब्ध है: http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/05/13.html

दूसरा भाग इस लिंक पर उपलब्ध है: http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/05/23.html


1. चलो हर की पौड़ी 

2. चलो गंगा स्नान के लिए 

3. चलो हर की पौड़ी. शायद आज बिक्री अच्छी हो  

4. आस्था है तो नंगे पैर गरम सड़क पर चलने में दिक्कत नहीं है 

5. पहले पेट पूजा फिर कोई काम दूजा   

6. कुछ राजस्थान से कुछ गुजरात से 

7. अपना अपना काम 

8. अपनी अपनी सवारी

9. हरिद्वार आए हैं तो गंगाजल तो ले जाना ही है - मैं हूँ ना 

10. चिंतन मनन - ज्यूँ तिल मांही तेल है, ज्यूँ चकमक में आग,  तेरा साईं तुझमें है, जाग सके तो जाग - संत कबीर 

11. रंग बिरंगे चोले. जा कारण जग ढूंढिया, सो तो घट ही मांहि । पर्दा दिया भरम का, ताते सूझे नाहीं - संत कबीर 

12. संध्या की जगमग  





Saturday 20 May 2017

लोंगेवाला युद्ध और स्मारक

जैसलमेर की यात्रा करें तो लोंगेवाला युद्ध स्मारक जरूर देखें. ये युद्ध स्मारक कुछ कमरों में ना बंद होकर खुले रेतीले रेगिस्तान में है. यह स्मारक दिसम्बर 1971 के एक ऐतिहासिक और निर्णायक युद्ध की याद दिलाता है जिसमें भारतीय सेना के थोड़े से जवानों ने एक बड़ी पाकिस्तानी ब्रिगेड को भारी नुकसान के साथ वापिस भागने पर मजबूर कर दिया. उस समय के टैंक, जीपें, बंकर वगैरा वैसे ही बरकरार रखे हुए हैं. ये स्मारक जैसलमेर से 108 किमी दूर है. आने जाने के लिए बसें और टैक्सी शहर में आसानी से उपलब्ध हैं. तीखी रेगिस्तानी धूप, तेज़ हवा और पानी का इंतज़ाम कर के चलें. वैसे जैसलमेर से पहले श्री तनोट माता का मंदिर और फिर लोंगेवाला युद्ध स्मारक देखते हुए शाम को वापिस शहर आया जा सकता है. सड़कें बहुत अच्छी हैं.

श्री तनोट माता मंदिर, जैसलमेर युद्ध स्मारक और फिर लोंगेवाला युद्ध स्मारक देखकर और ये जानकर कि इस रेगिस्तान में पाक ने हमले किये थे बड़ा कौतुहल हुआ और इच्छा हुई इतिहास के पन्ने पलटने की. इन तीनों स्मारकों में जो तस्वीरें हैं, टैंक और अन्य हथियार रखे हुए हैं और जो वहां बताया गया ध्यान से सुना, देखा और फिर इन्टरनेट में भी खोजबीन की. पढ़ने में रोमांचक लगा इसलिए ये कहानी पेश है. सेना और युद्ध का बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं है इसलिए भूल चूक के लिए क्षमा.

1. वर्ष 1971 भारतीय उप महाद्वीप के लिए ऐतिहासिक वर्ष था. '71 में नवम्बर माह ख़तम होते होते मुक्ति बाहिनी ने जेस्सोर पर लगभग कब्जा कर लिया था. वहां मौजूद पश्चिमी पाकिस्तानी फ़ौज को स्थानीय लोगों का सहयोग मिलना समाप्त हो गया था उलटे उनपर हमले हो रहे थे. पश्चिमी पाक से पूर्वी पाक में फ़ौज को रसद, हथियार और गोला बारूद तुरंत पहुंचाना संभव नहीं था. इसलिए जग जाहिर होने लगा था कि पकिस्तान का अंग भंग होने वाला था.

2. पाकिस्तान का मानना था की पूर्वी पकिस्तान की रक्षा पश्चिम से की जा सकती है. राजस्थान या पंजाब का कुछ हिस्सा अगर फुर्ती से हथिया लिया जाए तो भारत का ध्यान पूर्वी पकिस्तान से हट जाएगा. ऐसा करने से भारत की फ़ौज और संसाधन बंट जाएंगे और भारत लम्बी और फैलाव वाली लड़ाई नहीं लड़ पाएगा. ऐसे में अगर कुछ जमीन पर कब्जा हो और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय दबाव भी हो तो भारत ज्यादा देर तक लड़ाई नहीं झेल पाएगा और पाकिस्तान की बात मानने पर मजबूर हो जाएगा.

3. अमरीका और चीन के आशीर्वाद से पकिस्तान के पास उस समय के बेहतर हथियार, लड़ाकू जहाज और साज़ो सामान उपलब्ध थे. 13 दिन चले इस युद्ध में परोक्ष रूप से जॉर्डन, सऊदी अरब और लीबिया की वायु सेना की ओर से भी पाक को मदद भी मिल रही थी. इसलिए भारत से 1965 में हुई हार का बदला लेने और सबक सिखाने के इरादे बुलंद थे. इन सब बातों को मद्दे नज़र रखते हुए जनरल टिक्का खान ने पश्चिमी सीमा पर हवाई और सैनिक हमले की जोरदार योजना तैयार की.

4. 03 दिसम्बर 1971 की शाम को पाक वायु सेना ने ऑपरेशन चंगेज़ खान आरम्भ कर दिया. पहला हवाई हमला पठानकोट एयरबेस पर हुआ और रनवे को काफी नुक्सान पहुंचा. दूसरा हवाई हमला अमृतसर एयरबेस पर हुआ. रनवे में बड़े बड़े गड्ढे बन गए. तीसरे हमले में 20 लड़ाकू हवाई जहाज शामिल हो गए. शाम 6 बजे से 10 बजे तक अम्बाला, आगरा, सिरसा और उत्तरलाई एयर बेस पर बमबारी की गई. इनमें से सिरसा और उत्तरलाई में ज्यादा नुक्सान हुआ. आगरा एयरबेस में कई बम फटे ही नहीं क्यूंकि वो पुराने हो चुके थे. उधर जोधपुर, जैसलमेर और जामनगर पर भी कई हवाई हमले हुए. जैसलमेर में जमीन के नीचे बिछी बिजली और फोन की तारें ध्वस्त हो गईं.

5. उसी रात प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने पाक हवाई हमलों को भारत पर आक्रमण कहा और जवाबी कारवाई शुरू हो गई.13 दिन चले इस युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान खतम हो गया, बंगला देश बन गया और पाक फ़ौज के लगभग एक लाख सैनिक बंदी बना लिए गए.

6. 04 दिसम्बर की रात को एक बड़े हमले की तैयारी करके पाक फ़ौज का एक काफिला अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार कर के लोंगेवाला के नज़दीक पहुँच गया. इस लम्बे काफिले में थी लगभग 2000 सिपाहियों की एक ब्रिगेड, 45 टैंक और 500 से ज्यादा गाड़ियाँ. इनका प्लान था कि पहले लोंगेवाला पर कब्जा कर लिया जाए, उसके बाद 30 किमी आगे बढ़ कर रामगढ़ पर और फिर 78 किमी आगे जैसलमेर शहर कब्जा लिया जाए. चूँकि ये जगह रेगिस्तान में थीं और आबादी नहीं थी इसलिए ये काम 24 घंटों में हो जाना था. पर लोंगेवाला में तो कुछ और ही होना था.

7. भारत की सैनिक प्राथमिकता पूर्वी पाकिस्तान सीमा पर थी. वहां दिनों दिन उथल पुथल बढ़ रही थी. पश्चिमी पाकिस्तान से लगी सीमा पर भारतीय फ़ौज की स्थिति सुरक्षा या बचाव की थी. इस तरफ का फौजी जमावड़ा ख़ास ख़ास संवेदनशील जगहों पर ही रखा गया था.

8. लोंगेवाला पहुँचने वाली भारी भरकम पाक फ़ौज का मुकाबला करने के लिए पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन की अल्फ़ा कंपनी वहां तैनात थी जिसमें 120 जवान थे. इसके अलावा एक एंटी टैंक गन, दो रेकोइल लेस गन, एक सेक्शन MMG का और एक 81 मिमी के मोर्टार का था. साथ ही जैसलमेर में 4 हंटर लड़ाकू विमान, एक कृषक विमान और एक मारुत विमान उपलब्ध थे. पर हंटर विमान में रात में आक्रमण करने की सुविधा नहीं थी. इसके अलावा बी एस ऍफ़ के 4 जवान सीमा चौकी पर तैनात थे. अल्फ़ा कम्पनी की कमान थी मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरिया के हाथ में. अन्य अधिकारी थे कप्तान धर्मवीर, कप्तान भैरों सिंह, मेजर आत्मा सिंह. वायु सेना के अधिकारी थे विंग कमांडर एम एस बावा, विंग कमांडर आर ए कोवासजी, विंग कमांडर सुरेश और विंग कमांडर शेर्विन टली.

9. ये अल्फ़ा कम्पनी ऊँचे टीलों पर थी जहाँ गाड़ियों का आना जाना नहीं हो सकता था. टीलों के इर्द गिर्द कटीली तारों की बाड़ लगी हुई थी. तार बाड़ के आसपास जल्दी जल्दी कुछ बारूदी सुरंगे बिछा दी गईं थी. सामने सपाट मैदान बिलकुल सुनसान, बियाबान था और केवल छोटी छोटी झाड़ियाँ जहाँ तहां लगी हुई थीं. 23वीं बटालियन के बाकी जवान 17 किमी दूर साधेवाला में थे. 3 दिसम्बर के हवाई हमलों के बाद मेजर चांदपुरिया ने 20 जवानों की गश्ती टोली कप्तान धर्मवीर के साथ टोह लगाने के लिए सीमा पोस्ट की ओर भेजी.  कप्तान ने सूचना दी की बड़ी संख्या में दुश्मन के टैंक और गाड़ियाँ बढ़ी चली आ रही हैं. मेजर आत्मा सिंह ने अपने हवाई जहाज से उड़ान भरी और पुष्टि कर दी की लगभग २० किमी लम्बा काफिला इस ओर आ रहा है. मेजर चांदपुरिया ने तुरंत बटालियन मुख्यालय को सूचित किया और ख़ास तौर पर तोपों की सहायता माँगी. मुख्यालय ने जवाब दिया की सहायता पहुँचने में कम से कम छै घंटे का समय लगेगा. रात में जैसलमेर से हवाई आक्रमण भी संभव नहीं था. इन हालात में दो ही रास्ते थे - वहां डटे रहें और किसी तरह दुश्मन को रोकें या फिर मोर्चा छोड़ कर वापिस आ जाएं. परन्तु अँधेरी रात में वापिस जाने के लिए गाड़ियाँ नहीं थी. पैदल वापिस जाने में भी ख़तरा था और उधर दुश्मन तेज़ी से बढ़ा चला आ रहा था. परीक्षा की घड़ी आ गई थी.

10. मेजर चांदपुरिया ने मुकाबला करने का फैसला कर लिया. 4 दिसम्बर की रात 12.30 बजे हमला हो गया. मझोली तोपों के पहली बमबारी में बी एस ऍफ़ के ऊंट और पोस्ट ध्वस्त हो गयी. अब टैंकों का रुख अल्फ़ा कम्पनी की ओर हो गया. बड़े धैर्य के साथ और तैय्यारी के साथ उन्हें नज़दीक आने दिया गया और जब दूरी मात्र 15-20 मीटर की रह गयी रेकोइल लेस गन ने धाएं धाएं करके आग उगल दी. दो टैंक वहीँ के वहीँ खड़े रह गए. टैंकों पर तेल के ड्रम भी थे जो धमाके के साथ फटे और आग की लपटें उठने लगी. भारतीय सैनिक उंचाई पर थे और आग की रौशनी का फायदा उठाकर सही निशाना लगाते रहे और कामयाब होते रहे. कुछ टैंको ने दाएं बाएं से बढ़ने की कोशिश की पर बारूदी सुरंग फटने से वहां भी जाम लग गया. जिस रेत में पैदल चलना मुश्किल और गाड़ी चलाना और भी मुश्किल था वहां टैंक भी फंसने लग गए. टैंको को फुर्ती से दाएं बाएँ काटना या पीछे करना मुश्किल हो गया. ज्यादा कोशिश करने से टैंक रेत में धंसने लगे और आसान शिकार बन गए. कई टैंकों के इंजन गरम होकर सीज़ हो गए.

पहली जवाबी कारवाई में 12 टैंक बर्बाद हो गए. दुश्मन इस अचानक जवाब से सकपका कर थम गया. भारतीय खेमे का हौसला बुलंद हो गया. दुश्मन को अब बारूदी सुरंगों को हटाने की भी चिंता लग गई. बारूदी सुरंगें हटाने वाले सेप्पर्स बुलाए गए पर उन्हें दो घंटे बर्बाद करने के बाद भी कोई सुरंग नहीं मिली. बीच बीच में छोटे हथियारों से लगातार भारतीय सैनिकों पर आक्रमण होता रहा. पर भारतीय जवानों को ऊँचाई से निचले मैदान में जवाब देने में कम दिक्कत थी और सटीक गोलीबारी से कामयाबी भी मिल रही थी इसलिए हौसले हर मिनट पर बढ़ते जा रहे थे.

11. इस बीच आसमान की रंगत भी बदलने लगी. दुश्मन का प्लान अँधेरे में मिनटों में लोंगेवाला पर कब्जा करने का था पर वहां तो घंटो निकल गए. अब दिन निकलने के साथ ही उनकी पोजीशन पूरी तरह से सामने आने वाली थी. रेगिस्तान में दूर दूर तक कोई पेड़ ना ही कोई जंगल था. गाड़ियों तो क्या वहाँ सिपाहियों के लिए भी छुपने की जगह नहीं थी. उधर जैसलमेर के एयरबेस में लड़ाकू विमान हंटर हथियारों से लैस उड़ने के लिए तैयार हो चुके थे. इनमें 30 मिमी के तोपें और मात्रा-T-10 रॉकेट लगे हुए थे.

पहली किरण के साथ ही हंटर विमानों ने उड़ान भरी और पाकिस्तानी काफिले पर बमबारी शुरू कर दी. मेजर आत्मा सिंह अपने कृषक विमान AOP में से टारगेट की सूचनाएं देते जा रहे थे. दुश्मन का पूरा का पूरा काफिला, पैदल, टैंक, ट्रक और बख्तर बंद गाड़ियाँ खुले मैदान में नज़र आ रही थीं. पाक वायु सेना कहीं और व्यस्त थी. पाक टैंकों पर लगी 12.7 मिमी की एंटी एयर क्राफ्ट फायरिंग कारगर नहीं थी. इसलिए हंटर विमानों ने जमकर 'तीतर बटेरों' का शिकार किया. बे रोक टोक उड़ान भरी और 22 टैंक और 100 से ज्यादा गाड़ियाँ तबाह कर दी.

12. सुबह तक भारतीय सेना के 20 लैंसर्स के टैंक और 17 राजपुताना राइफल्स भी लोंगेवाला पहुँच गयी और पाकिस्तान पर पलटवार कर दिया गया. आक्रमणकारी बड़ी तेज़ी से आये, थमे, मुड़े और फिर भाग लिए. लगभग छै घंटे के युद्ध में पकिस्तान के इरादे थार रेगिस्तान की रेत में मिल गए.

13. लोंगेवाला के इस निर्णायक युद्ध में भारत के दो जवान शहीद हुए, एक एंटी टैंक गन बर्बाद हो गयी. पाकिस्तान के 200 सिपाही मारे गए 36 टैंक और 500 गाड़ियां बर्बाद हुई. युद्ध के बाद मेजर चांदपुरिया को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. यूनिट के कई अन्य लोगों को भी सम्मनित किया गया.

14. दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहली ऐसी लड़ाई थी जिसमें इतने टैंक बर्बाद हुए. ब्रिटिश मीडिया में इस युद्ध की काफी चर्चा हुई. कुछ हफ़्तों बाद ब्रिटिश फील्ड मार्शल आर एम कार्वर स्वयं लोंगेवाला का जाएज़ा लेने आये और मेजर चांदपुरिया से भी मिले. इस युद्ध पर बाद में 'बॉर्डर' फिल्म भी बनी.

लोंगेवाला युद्ध स्मारक, जैसलमेर के कुछ चित्र प्रस्तुत हैं:


1. दुश्मन का शेर्मन टैंक शर्मसार हुआ 

2. चीन में बना T 59 टैंक 

3. रिकोयल लेस गन - RCL M 40

4. बंकर में से नज़र आता दुश्मन का टैंक 

5. दुश्मन की गाड़ी बंकर के सामने 

6. एक बंकर से दूसरे बंकर जाने की खाई या ट्रेंच 

7. सिपाही जगजीत सिंह का बंकर

8. लांस नायक मथुरा दास की जीप और उसमें लगी आर.सी. एल. गन


9. पीली रेत की टीले और छोटी छोटी झाड़ियाँ. पैदल चलना मुश्किल, गाड़ी चलाना मुश्किल और टैंक को तेज़ी से दाएं बाएँ काटना और भी मुश्किल. दूर दूर तक छुपने की कोई जगह नहीं  

10. भारतीय गन 

11. युद्ध के समय की स्थिति : बॉर्डर 15 किलोमीटर, बॉर्डर पोस्ट 16, साधेवाला 20, तनोट 35, रामगढ़ 43 और जैसलमेर 108 किमी दूर. हमला लाल निशान की ओर से 4 दिसम्बर '71 की रात में 12.30 बजे हुआ  

12. Battle of Longewala in nutshell

13. लोंगेवाला स्मारक के दर्शनार्थी 

14. लोंगेवाला चौक 

15. विजयी तिरंगा 

श्री तनोट माता मंदिर पर एक फोटो-ब्लॉग इस लिंक पर देखा
जा सकता है: http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/02/blog-post_25.html

जैसलमेर वार म्यूजियम पर एक फोटो-ब्लॉग इस लिंक पर देखा
जा सकता है: http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/01/blog-post_25.html




Tuesday 16 May 2017

हरिद्वार पर फोटो-ब्लॉग - 2/3

समुद्र मंथन के बाद अमृत का घड़ा लेकर गरुड़ ने देवलोक की ओर उड़ान भरी तो अमृत की कुछ बूँदें छलक कर हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नासिक में गिरीं. इससे हरिद्वार की मान्यता जानी जा सकती है. शिवालिक पहाड़ियों और गंगा तट के बीच बसा तीर्थ हरिद्वार, दिल्ली से 225 किमी दूर है. समुद्र तल से इसकी ऊँचाई लगभग 250 मीटर है. यहाँ का तापमान मौसम के अनुसार 5 से 40 डिग्री तक जा सकता है. सितम्बर से अप्रैल तक घूमने के लिए अच्छा मौसम है. हर तरह की धर्मशालाएं और होटल यहाँ उपलब्ध हैं. तीर्थ होने के कारण बारहों महीनें यात्रियों का आना जाना लगा रहता है.

गंगा अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से शुरू होती है और लगभग 250 किमी की पहाड़ी यात्रा करके हरिद्वार पहुँचती है. यहाँ से गंगा की मैदानी यात्रा शुरू हो जाती है. इसीलिए हरिद्वार का एक और नाम है गंगाद्वार. पुराने समय में यहाँ कपिल ऋषि ने तपस्या की थी इसलिए हरिद्वार को कपिलस्थान भी कहा गया है. एक और नाम मायापुरी भी पुराने समय में प्रचलित रहा है.

हरिद्वार के नाम की एक और रोचक जानकारी मिली कि हर हर महादेव याने शिव भक्त इसे हरद्वार कहते हैं. जबकि हरि याने विष्णु भक्त इस स्थान को हरिद्वार कहते हैं.

उत्तराखंड के चार धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा का द्वार हरिद्वार ही है. हरिद्वार का सबसे पवित्र और प्रसिद्द घाट है हर की पौड़ी( या हर की पैड़ी ). कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तहरी ने यहाँ गंगा तट पर तपस्या की थी. राजा विक्रमादित्य ने उनकी याद में ईसा पूर्व पहली शताब्दी में ये घाट बनवाया था जो कालान्तर में हर की पौड़ी कहलाया.

हर की पौड़ी पर 24 घंटे मेला ही लगा रहता है. मुंडन भी यहीं है, पूजा पाठ भी और अस्थि विसर्जन भी और गंगा सब कुछ समेट लेती है. कुछ के लिए यह तीर्थ है और कुछ के लिए जीविका का स्थान. पण्डे, बहरूपिये, भीख मांगने वाले वगैरा वगैरा यात्रियों पर ही निर्भर हैं.

बहुत से फोटो लिए जिन्हें तीन भागों में प्रकाशित किया जाएगा. तीन में से दूसरा भाग प्रस्तुत हैं.

पहला भाग इस लिंक पर उपलब्ध है :  http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/05/13.html 


1. कल कल बहती गंगा सबकी मैल सबके पाप धोने को तैयार 

2. अस्थि प्रवाह करने वाले बहुत से लोग सोने चांदी का एक आधे ग्राम का टुकड़ा भी प्रवाहित कर देते हैं. ये भैय्या डुबकी मार के उन्हें ढूँढने की कोशिश करते हैं. पापी पेट का सवाल है जी  

3. क्या लेंगे आप हींग, रुद्राक्ष या जड़ी बूटी ?

4. क्यूँ, कैसे, और कहाँ से आया या क्या उम्र है इसने बताया नहीं. पर फोटो खिंचवाने के दस रूपये फीस ली 

5. बहरूपिया. मंगलवार हो या बुध, हनुमान का रूप रख के ये बहरूपिया इस पुल पर चक्कर काटता रहता है. आपका ध्यान बंटा और इसने झट से लाल तिलक आपके माथे पर लगाया. फिर तो दक्षिणा देनी ही पड़ेगी  

6. एक और बहरूपिया काली माई के भेष में. पैसे कमाना आसान नहीं है 

7. गंगा स्नान के बाद कान की सफाई. कान की सफाई और मालिश वाले दर्जन भर घूमते फिरते नज़र आते हैं  

8. सुबह की मीटिंग बीच बाज़ार में 

9. 'ये पत्थर हिमालय से ढूंढ के लाये हैं जी हम. स्फटिक भी हैं हमारे पास. आपके हिसाब से चुन कर देंगे किस्मत बदल जाएगी. देखिये तो सही साब जी देखने के पैसे नहीं लेंगे जी'  

10. ये बालक चुम्बक को 20-25 फुट की डोरी से बाँध कर घाट घाट घूमता रहता है. उम्मीद करता है की कुछ सिक्के चुम्बक में लग कर हाथ आ जाएंगे वर्ना कुछ नट बोल्ट और कीलें तो मिल ही जाती हैं 

11. पार्किंग में घुसते ही शुरू.  काला चश्मा और फैला हाथ देख मन में अस्मंजस हो जाता है की दें या ना दें  


12. शेर हों या भक्त सब के लिए पूड़ी, छोले-भठूरे 

13. शिव मूर्ति, गंगा की धारा, गंगा पर पुल और गंगा की मूर्ति 

14. संध्या 





Sunday 14 May 2017

हरिद्वार पर फोटो-ब्लॉग - 1/3

समुद्र मंथन के बाद अमृत का घड़ा लेकर गरुड़ ने देवलोक की ओर उड़ान भरी तो अमृत की कुछ बूँदें छलक कर हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नासिक में गिरीं. इस कथा से हरिद्वार की मान्यता जानी जा सकती है. शिवालिक पहाड़ियों और गंगा तट के बीच बसा तीर्थ हरिद्वार, दिल्ली से 225 किमी दूर है. समुद्र तल से इसकी ऊँचाई लगभग 250 मीटर है. यहाँ का तापमान मौसम के अनुसार 5 से 40 डिग्री तक जा सकता है. सितम्बर से अप्रैल तक घूमने के लिए अच्छा मौसम है. हर तरह की धर्मशालाएं और होटल यहाँ उपलब्ध हैं. तीर्थ होने के कारण बारहों महीनें यात्रियों का आना जाना लगा रहता है.

गंगा अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से शुरू होती है और लगभग 250 किमी की पहाड़ी यात्रा करके हरिद्वार पहुँचती है. यहाँ से गंगा की मैदानी यात्रा शुरू हो जाती है. इसीलिए हरिद्वार का एक और नाम है गंगाद्वार. प्राचीन काल में यहाँ कपिल ऋषि ने तपस्या की थी इसलिए हरिद्वार को कपिलस्थान भी कहा गया है. एक और नाम मायापुरी भी पुराने समय में प्रचलित रहा है.

हरिद्वार के नाम की एक और रोचक जानकारी मिली कि हर हर महादेव याने शिव भक्त इसे हरद्वार कहते हैं. जबकि हरि याने विष्णु भक्त इस स्थान को हरिद्वार कहते हैं.

उत्तराखंड के चार धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा का द्वार हरिद्वार ही है. हरिद्वार का सबसे पवित्र और प्रसिद्द घाट है हर की पौड़ी( या हर की पैड़ी ). कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तहरी ने यहाँ गंगा तट पर तपस्या की थी. राजा विक्रमादित्य ने उनकी याद में ईसा पूर्व पहली शताब्दी में ये घाट बनवाया था जो कालान्तर में हर की पौड़ी कहलाया.

हर की पौड़ी की शाम की आरती बड़ी आकर्षक लगती है. साथ ही घाट पर 24 घंटे का मेला ही लगा रहता है. मुंडन भी यहीं है, पूजा पाठ भी और अस्थि प्रवाह भी. गंगा सब कुछ समेट लेती है. दिल्ली, बिहार, राजस्थान, गुजरात, बंगाल और यहाँ तक की दक्षिण भारत से भी भक्तगण आते रहते हैं. बच्चे, बूढ़े और जवान, पण्डे, साधू संत, बहरुपिए, जेबकतरे, मांगने वाले, बेचने वाले, तरह तरह के कपड़े, तरह तरह के चेहरे याने पूरी मानवता का दर्शन हर की पौड़ी पर हो जाता है.

इस बार सुबह के चार घंटे घाट पर मेला देखते देखते हुए ही गुज़ार दिए. बहुत से फोटो लिए जिन्हें तीन भागों में प्रस्तुत किया है और यह पाहला भाग है:


1. हर की पौड़ी. ये घंटाघर 1938 में बना था और तब से अब तक इसने करोड़ों लिटर पानी बहते देखा होगा. करोड़ों लोगों ने डुबकी मार ली होगी.  'धर्म किये धन ना घटे नदी ना घट्टे नीर, अपनी आंखन देखि ले यों कथि कहिहें कबीर'  

2. हर की पौड़ी से आगे बढ़ता शहर. साफ़ सफाई बढ़िया होती और रख रखाव अच्छा होता तो और भी सुंदर हो सकता है  

3. गंगा से निकली एक धार हर की पौड़ी से गुज़रती है और आगे अपर गंग नहर के रूप में मोदी नगर होते हुए एटा की ओर चली जाती है. हजारों साल से निरंतर फल, फूल, खेती और मानव सेवा में लगी हुई है गंगा चाहे मानव उसका कम ही ध्यान रखता है     

4. गुड़िया रानी सामान की पहरेदारी करते करते थक गई लगती है 

5. श्रद्धांजलि के फूल प्रवाहित करने की तैयारी 

6. चदरिया झीनी रे झीनी  

7. हर की पौड़ी पर कई तरह के विधि विधान हर समय चलते रहते हैं. 'कहना था सो कह दिया अब कुछ कहा ना जाय, एक रहा दूजा गया दरिया लहर समाय' - कबीर 

8. नियम तो हर की पौड़ी में भी वही है - महिलाऐं शौपिंग करेंगी और पुरुष जेब ढीली करेंगे 

9. जल पुलिस और थल जेबकतरे - हम आस पास हैं!

10. गंगा स्नान हो गया है और मोबाइल पर सूचना दी जा रही है तब तक पतिदेव कपड़े सुखा लेंगे  

11. भांत भांत के रंग भांत भांत के चोले

12. कोऊ काहे में मगन कोऊ काहे में - चिलम का सुट्टा, स्नान के बाद कान की सफाई या फिर यूँ ही विश्राम. 'माला फेरत जुग भया, फिरा ना मन का फेर, कर का मनका डार दे मन का मनका फेर' -कबीर                   

13. तीन सौ साल पुराना बरगद और श्री महंत केदार पुरी जी का धूना याने 24 घंटे लकड़ी जलती रहती है, धुआं उठता रहता है और बाबा जी भस्म लगाते रहते हैं. 'चाह मिटी चिंता मिटी मनवा बेपरवाह,  जा को कुछ ना चाहिए वा ही शहनशाह' - कबीर     

14. आरती का समय