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Sunday 30 April 2017

ऑफिस की क्लियोपैट्रा

चीफ साब कुर्सी पर विराजमान हुए. पानी का गिलास उठा कर दो घूंट पिए और फिर ढक कर रख दिया. पेन, पेंसिल और एक राइटिंग पैड दराज में से निकल कर सामने टेबल पर रख लिया. एक जरूरी फाइल भी रख ली जिसकी आज चिट्ठी भेजनी थी. सर पर कंघी फेरी तो चार छे बचे हुए बाल पहले लेट गए और फिर खड़े हो गए.

अब केबिन के शीशे से बाहर का जायज़ा लिया. हॉल के कोने में कैशिएर के पास कुछ लोगों की महफ़िल चल रही थी. सुबह अक्सर ऐसा होता है लोग हाथ मिला कर दो चार मिनट गपशप लगाते हैं. पर इस महफ़िल में शोर कुछ ज्यादा ही था. घंटी मार दी और चपरासी को बोला,
- नरूला साब.
नरूला साब केबिन में आए,
- गुड मोर्निंग सर! कैसे हैं आप सर? आपने याद किया सर?
- नरूला ये आज कैसी महफ़िल चल रही है. दो एक दिन पहले भी मैंने इसी तरह की महफ़िल देखी थी. क्या माजरा है?
- सर संक्षेप में बताऊँ या विस्तार से? 
- यार नरूला ऑफिस में शोर्ट में बात किया करो. ऑफिस के बाद में अपनी शायरी और साहित्य का ज्ञान बांटा करो. मुझे पता है कि तुम हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी साहित्य के ज्ञाता हो.
- जी सर जी सर. बिलकुल सर. संक्षेप में बता रहा हूँ सर की ऑफिस में कलूपेत्रा आ गई है.
- कौन?
- कलूपेत्रा सर जिसे अंग्रेजी में क्लियोपैट्रा कहते हैं. 
- कौन?
- सर पहली तारीख को नई लड़की ने ज्वाइन किया था उसी की बात कर रहा हूँ.
- तो उसे क्या हुआ?
- सर उसने गार्ड से माचिस माँगी, फिर पर्स से डिब्बी निकली, डिब्बी से सिगरेट निकली, फिर सुलगाई और सुट्टे मारने लगी. अब चर्चा तो होनी ही थी साब.
- उसे समझा देते.
- समझा दिया सर, अच्छी तरह से समझा दिया. अब ऑफिस में नहीं पीयेगी.
- और ये महफ़िल?
- सर अब अगर क्लियोपैट्रा आई है तो मार्क एंटोनी, जूलियस सीज़र जैसे बहुत सारे मजनूं भी तो मंडराते नज़र आएँगे ना सर. इसलिए महफ़िल लगती है सर.
- क्या मतलब?
- सर इस ऑफिस में एक ही तो कंवारा है मनोहर मदान है. सर मन्नू तो उस पर फ़िदा हो गया है. केशियर भी उस पर मरने लगा है. क्लियोपैट्रा की ड्रेस देख कर अब मिसेज़ मल्होत्रा और मिसेज़ गोयल भी क्लियोपैट्रा से चिढ़ने लगी हैं सर.
- छोड़ो नरूला ये सब.
- मैं तो सर वैसे ही बता रहा हूँ. सारे जेंट्स आजकल जल्दी आ रहे हैं और बेहतर ड्रेस में आ रहे हैं. और परफ्यूम वगैरा भी लगा रहे हैं. वातावरण बदला हुआ है सर ऑफिस का.
- परफ्यूम?
- सर आप तो वही लगाते होंगे जो मैडम लाती होंगी. बदल लें सर.
- मतलब?
- सर मैंने नहीं ये क्लियोपैट्रा ने कहा है.
- क्या?
- की चीफ साब परफ्यूम बदल लें घरवाली की उठा के लगा लेते हैं.

अगले दिन ही परफ्यूम बदल गई. नरूला साब केबिन में आए और बोले,
- नमस्कार सर. आज तो नई नई परफ्यूम महक रही है सर?
- और बताओ?
- पर सर परफ्यूम बदलने का अब कोई फायदा नहीं है.
- क्या मतलब?
- शाम को जाते हुए क्लियोपैट्रा ये इस्तीफा दे गई है.
- क्या?
- कह गई है कि कितना बे-रंग ऑफिस है ये. इन बुड्ढे टकले अफसरों के साथ मैं नहीं काम कर सकती.

तेरा क्या होगा कालिया 




Thursday 27 April 2017

टेहरी गढ़वाल

दिल्ली से टेहरी गढ़वाल लगभग 320 किमी की दूरी पर है और ऋषिकेश से 75 किमी. ऋषिकेश से आगे पहाड़ी सड़क अच्छी है, आड़े टेड़े घूम और कट कम हैं इसलिए हम अपनी गाड़ी खुद चला कर ले गए. टेहरी की उंचाई लगभग 2000 मीटर है. गर्मियों में यहाँ का तापमान 30 तक और सर्दियों में 2 तक जा सकता है. बारिश कमोबेश 70 सेंमी सालाना तक हो जाती है.

टेहरी का पुराना नाम त्रिहरि बताया जाता है और उससे भी पुराना नाम गणेश प्रयाग. यहाँ भागीरथी और भिलांगना मिलती हैं और ऋषिकेश की ओर चल पड़ती हैं.

सन् 888 तक गढ़वाल में छोटे छोटे 52 गढ़ हुआ करते थे जो सभी स्वतंत्र राज्य थे. इनके मुखिया ठाकुर या राणा या राय कहलाते थे. एक बार मालवा के राजा कनक पाल सिंह बद्रीनाथ दर्शन के लिए आये. एक गढ़ के राजा भानु प्रताप ने अपनी इकलौती बेटी की शादी कनक पाल सिंह से कर दी. इसके बाद कनक पाल सिंह और उनके उत्तराधिकारियों ने धीरे धीरे सारे गढ़ जीत कर एक गढ़वाल राज्य बना लिया. 1803 से 1815 तक गढ़वाल में नेपाली राज रहा. ईस्ट इंडिया कंपनी और स्थानीय छोटे राजाओं ने एंग्लो-नेपाल युद्ध में नेपाली शासन को हरा दिया और टेहरी रियासत राजा सुदर्शन शाह को दे दी गयी.

सुदर्शन शाह और उनके वंशजों ने रियासत का भारत में विलय होने तक राज किया. इनमें से प्रमुख थे प्रताप शाह जिसने प्रताप नगर बसाया, कीर्ति शाह जिसने कीर्ति नगर बसाया और नरेंद्र शाह जिसने नरेंद्र नगर बसाया. ऋषिकेश से टेहरी जाते हुए नरेंद्र नगर रास्ते में देखा जा सकता है.

टेहरी का नाम टेहरी बाँध से जुड़ा हुआ है. इस बाँध की परिकल्पना पहले पहल 1961 में की गई. बहुत सी सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी बाधाओं को पार करने के बाद 2006 में परियोजना चालू हुई. भारत का सबसे ऊँचा और विश्व में पांचवे नंबर का ऊँचा बाँध है जो 2400 मेगावाट बिजली, 102 करोड़ लिटर पीने का पानी और 2,70,000 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई की क्षमता रखता है. सुरक्षा कारणों से अंदर जाना मना है और अगर किसी उच्च अधिकारी की सिफारिश पर पहुंच भी गए तो फोटो खींचना मना है.

बाँध से दूर झील में बोटिंग, स्कीइंग वगैरा की जा सकती है. झील के बीच में नाव की सवारी रोमांचक है. पर जब नाविक ने बताया की कहीं कहीं पानी की गहराई 800 मीटर तक भी है तो एक बार तो नौका सवारी भयभीत और रौंगटे खड़े करने वाली लगती है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:


नया बसा न्यू टेहरी शहर, पहाड़, घाटियाँ, बादल, कोहरा और सुनहरी धूप

 टेहरी की घाटियों  बारिश के बाद घाटी से उठता कोहरा 

नई टेहरी का एक दृश्य 
टेहरी से 12 किमी पहले है चंबा 

सुबह सुबह का दृश्य 

बारिश के बाद कोहरा 

भागीरथी. बारिशों में पानी का तल ऊपर सीमा रेखा तक चला जाता है 

भागीरथी के साथ साथ  

टेहरी झील का बोट क्लब 

हाँ तैयार हूँ जनाब !

स्पीड बोट, चेयर बोट, स्कीइंग और वाटर स्कूटर उपलब्ध हैं 

मानसून के बाद पानी छोटी पहाड़ियों को डुबो देता है 

झील अलग से ना बना कर पानी घाटियों में ही इकठ्ठा कर लिया जाता है 

पानी घटने पर पुराने टेहरी की झलक नज़र आती है 

टेहरी शहर का 1992 का फोटो - सिंह राशि, नाम त्रिहरी ( टेहरी ). जन्म 28 दिसम्बर 1815, जलमग्न 29 जुलाई 2005 शाम 5.34 बजे 

पहाड़ों पर चढ़ना उतरना आसान नहीं है और ना ही गाड़ी चलाना. पर फिर मज़ा भी तो है ! एक स्थानीय कहावत है की "जवानि  मा  नि  देखि देस  बुढेन्दा  खाबेस". याने आप जल्द से जल्द बस्ता बाँध लो पहाड़ों की सैर के लिए 




Saturday 22 April 2017

जैसलमेर की हवेलियाँ

बख्तर कीजे लोहे का,
पग कीजे पाषाण !
घोड़ा कीजे काठ का,
तब देखो जैसान !

ये पुरानी कहावत जैसलमेर की दशा बताती हैं. थार रेगिस्तान की भयंकर गर्मी या फिर कड़ाके की सर्दी और तेज़ धूल भरी हवाओं के थपेड़े यात्रियों को परेशान करते हैं. इसलिए यात्रियों को सलाह दी गई कि कपड़ों के बजाए लोहे का बख्तर पहन लें जो ना मैला हो और ना फटे, पैर पत्थर के बना लें जो तपती रेत में झुलसे नहीं और ना ही थकें, घोड़ा लकड़ी का ले लें जो ना कभी थके और ना पानी मांगे और तब जैस्सल राजा का स्थान देखने निकलें ! अब बख्तर और घोड़ा तो पुरानी बात हो गई पर आप जैसलमेर जाते समय अपनी गाड़ी का कूलैंट और ए.सी. जरूर चेक कर लें !

जैसलमेर शहर भाटी राजपूत महाराजा जैसल द्वारा 1178 में बसाया गया था. थार रेगिस्तान में बसा ये शहर जयपुर से लगभग 560 किमी दूर है और दिल्ली से 780 किमी. रेगिस्तान होने के कारण गर्मियों में तापमान 50 के नज़दीक पहुँच जाता है और सर्दियों में शून्य के नज़दीक पहुँच सकता है.

काफी लम्बे समय तक इराक, ईरान, अफगानिस्तान जैसे देशों से व्यापारी ऊँटों के कारवां लेकर चलते थे और जैसलमेर व्यापारियों का एक पड़ाव था. अफीम, सोने, चांदी, हीरे जवाहरात, सूखे मेवों वगैरा का व्यापार हुआ करता था. जैसलमेर के समृद्ध व्यापारियों ने अपने रहने के लिए सुंदर हवेलियाँ बना रखी थी. इन हवेलियों को अपने समय के सबसे सुंदर साजो सामान से सजाया जाता था. हर हवेली का डिजाईन, नक्काशी और रूप रंग अलग अलग था. तेज़ गर्मी और कड़ाके की ठण्ड को ध्यान में रखते हुए इनका निर्माण किया गया था. खम्बे, दरवाज़े, खिड़कियाँ, झरोखे सभी पर सुंदर और मनोहारी कारीगरी दिखाई पड़ती है. ज्यादातर स्थानीय हल्का पीला पत्थर इस्तेमाल किया जाता था. इसके अलावा मकराना का सफ़ेद संगमरमर और जोधपुर का हल्का गुलाबी बालू पत्थर भी काफी इस्तेमाल किया गया है.

दीवान नथमल की हवेली 1885 में बनी और अभी भी उनके वंशजों के पास ही है. पटवा हवेलियाँ 1805 में बनना शुरू हुई. सेठ घुम्मन चंद पटवा का ज़री याने ब्रोकेड का काम खूब चलता था. उन्होंने अपने पांच बेटों के लिए दस लाख रुपए की लागत से पांच हवेलियाँ बनवाई जो लगभग 50 सालों में बन कर तैयार हुईं. इन पांच हवेलियों में से पहली हवेली में संग्रहालय है और बाकी चार बंद पड़ी हैं. संग्रहालय में जाने के लिए टिकट लगता है और गाइड फीस देने पर उपलब्ध हैं.  गाइड ने बताया की बंद हवेलियाँ सरकार ने ले ली हैं. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

दीवान नथमल की हवेली. जैसलमेर के महारावल ( राजा - रावल और महाराजा - महारावल ) बैरिसाल ने 1885 में ये दो मंजिली हवेली बनवा कर दीवान को उपहार में दी. दाएं बाएँ दो हाथी खड़े हैं जो समाज में हवेलीदार का उंचा ओहदा दर्शाते हैं  

दीवान नथमल की हवेली  की ड्योढ़ी याने प्रवेश. दीवार, चबूतरे, खिड़कियों और छज्जों पर बारीक और बेहतरीन नक्काशी  

पटवा की हवेलियों में से दूसरी हवेली 

हवेलियों के बीच का दालान 

गली में निकले हुए बेहतरीन नक्काशी वाले छज्जे 

पटवा की एक हवेली का प्रवेश द्वार और तहखानों की खिड़कियाँ 

हवेली के नीचे से ऊपर तक सुंदर नक्काशी 

पतली गली के दोनों ओर हवेलियाँ होने के कारण गली में भीषण गर्मी में भी ठंडक बनी रहती है 

पटवा की चौथी हवेली 

हवेलियों के बीच की पतली गली 

हवेली का संग्रहालय - नाप तौल का सामान. तोला, मासा, रत्ती से लेकर २० सेर तक के बाट. छोटे बाट से अफीम, सोना और चांदी जैसी चीज़ तोली जाती थी  

हवेली की महिलाओं के लिए साज सिंगार के बक्से और अन्य सामान 

तीसरी मंजिल पर बने नक्काशीदार सुंदर झरोखे और पर्यटक 

दीवान खाने में बहुत सी पेंटिंग लगी हैं. जलपान में इस्तेमाल किये जाने वाले बर्तन 

हवेली जाने का रास्ता. पूरा पुराना शहर आप पैदल भी घूम सकते हैं 

हवेली के पास देसी दूकानदार और फिरंगी खरीदार. दोनों को एक दूसरे की भाषा नहीं आती पर मोल भाव खूब चलता है. पास में खड़े होकर चुपचाप देखें और सुनें तो मज़ा आता है कि कैसे इशारों और हाव भाव से खरीद बेच होती है  

पटवा की हवेली में कठपुतलियों का बाज़ार 


* मंडावा की हवेलियाँ पर एक फोटो-ब्लॉग इस लिंक पर देख सकते हैं :

  http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/01/blog-post_20.html

* रामपुरिया हवेलियाँ, बीकानेर पर एक फोटो-ब्लॉग इस लिंक पर देख सकते हैं :
   






Wednesday 19 April 2017

रीगल

राजकपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर और संगम  दिखाकर कनॉट प्लेस नई दिल्ली का रीगल थिएटर पिछले दिनों बंद हो गया.

समय बड़ा बलवान है साहब और समय की मार रीगल सिनेमा भी नहीं झेल पाया. वैसे तो दिल्ली के दिल याने कनॉट प्लेस की शान था रीगल सिनेमा. सिनेमा के दाएं या बाएं खड़े होकर जनता का आना जाना देखने में मज़ा आता था. बीसियों लोग एक तरफ से दूसरी तरफ जाते हुए दिखते थे और इसी तरह पचासों लोग दूसरी तरफ से आते हुए नज़र आते थे. कुछ जल्दी में तो कुछ ख़रामा ख़रामा. नौकरी से वापिस घर जाती हुई महिलाएं तेजी से बस पकड़ने के लिए भागती थीं. बीच बीच में दो चार फिरंगी निक्कर और बनियान पहने हुए इधर से उधर जाते हुए मिलते थे. तरह तरह के चेहरे और रंग वाले पर्यटक दिखते थे. कभी कभी कोई नशेड़ी भी झूमता हुआ नज़र आ जाता था तो कभी स्कूली बच्चे. रंगीन चश्मे, मालाएं और दूसरा छोटा मोटा सामान बेचने वाले आपको टटोलते रहते. मतलब ये की एक पिक्चर रीगल सिनेमा के अंदर चलती रहती थी और दूसरी बाहर.

ये तो अब भी हो रहा होगा और आगे भी होता रहेगा. 1932  में बना ये थिएटर तब भी ऐसा ही पोपुलर रहा होगा. यहाँ बैले, नाटक और फ़िल्में भी दिखाई जाती थी. बाद में तो कनॉट प्लेस में और सिनेमा हाल भी बन गए जैसे कि रिवोली, ओडियन और प्लाज़ा. सुना है की जब दूसरे थिएटर आठ आने या दस आने का टिकट देते थे तो रीगल एक रूपये या एक रूपये चार आने का टिकट देता था. अपने ज़माने का सबसे बड़ा और शानदार थिएटर कहलाता था. पर समय के साथ रीगल सिनेमा हाल को झटकाया चाणक्य सिनेमा हाल ने और फिर साकेत के पीवीआर ने. इन दोनों हॉल में बेहतर फर्नीचर, बेहतर परदे और बेहतर आवाज़ का प्रबंध था और धीरे धीरे रीगल फीका लगने लगा.

रीगल बिल्डिंग तीन मंजिली थी और पहले माले पर स्टैण्डर्ड रेस्तरां हुआ करता था. रीगल सिनेमा हाल तो अब बंद हुआ है पर स्टैण्डर्ड काफी पहले ही बंद हो चुका है. बसों में रीगल आना जाना काफी सुविधाजनक था. इस वजह से कई बार दोस्त यारों के जन्मदिन या प्रमोशन की पार्टी भी इसी रेस्तरां में हुई थी.

एक दिन सहगल ने बताया कि स्टैण्डर्ड रेस्तरां में क्या गजब की मशीन लगाई गई है.
- अरे यार सिक्का डालो तो मनपसंद गाना बजने लग जाता है. कमाल की मशीन है यार.
- चलो शनिवार को देखने चलते हैं.
हम तीन दोस्त शनिवार को वहां पहुँच गए तो पता लगा छोटी अलमारी जितने मशीन का नाम ज्यूक बॉक्स है. इसमें पहले गाना देखो कौन सा बजाना है फिर उसमें सिक्का डालो और फिर गाने का मज़ा लो. उन दिनों एक फ़िल्मी गाना खूब चलता था :

आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आए  तो बात बन जाए  ...

गाने की ट्यून बड़ी सुरीली, कैची और नए किस्म की थी. वही गाना पसंद किया, सिक्का डाला और वाह गाना चालू हो गया. गाना सुनने के बाद इन्दर बोला:
- बड़ा स्वीट गाना है डियर. पर यार ये क्या बोलती है 'बाप बन जाए' इसका क्या मतलब ?
- अबे कम्बखत बाप बन जाए नहीं, बात बन जाए बोलती है.
- अरे नहीं यार बाप बन जाए बोलती है. ये सिक्का ले और दुबारा सुन ले.
दूसरी बार और फिर तीसरी बार भी इसी गाने का सिक्का डाला गया. पर लम्बी बहस के बाद 1 के मुकाबले 2 वोट से फैसला हो गया कि गाने में 'बात बन जाए' ही बोलती है ना कि बाप बन जाए.

समय गुज़रा हम तीनों बाप बन गए और प्रमोशन लेकर दिल्ली से बाहर चले गए. रीगल आना जाना बंद ही हो गया. अब अखबारों से पता लगा कि रीगल ही बंद हो गया. ठीक है साहब अब कुछ नया आएगा.


Regal cinema, Connaught Place, New Delhi.jpg
रीगल, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली, फोटो विकिपीडिया से साभार  




Monday 17 April 2017

राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रॉस

राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रॉस ( मरणोपरांत ) का जन्म 21 अप्रैल 1895 के दिन चंबा, टेहरी गढ़वाल के निकट मंज्युड़ गाँव में हुआ था. 1913 में उन्होंने 39वीं गढ़वाल की दूसरी बटालियन में बतौर राइफलमैन ज्वाइन किया. इस बटालियन को प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1915 में फ्रांस के न्यू चेपल इलाके में तैनात किया गया था. उस वक्त वहां जर्मनी का कब्जा था.

राइफलमैन नेगी ने संगीन की सहायता से खाइयों में छुपे बहुत से जर्मन सैनिकों को मार गिराया और उनकी असाधारण वीरता के कारण जर्मन सैनिकों को हथियार डालने पड़े. इस बीच राइफलमैन नेगी भी शहीद हो गए. उनकी असाधारण वीरता पर उस वक्त का सर्वोच्च पुरस्कार 'विक्टोरिया क्रॉस' मरणोपरांत दिया गया. 28 अप्रैल 1915 के लन्दन गज़ट में इस की घोषणा की गई ( विकिपीडिया से साभार ):

His Majesty the King has been graciously pleased to approve of the grant of the Victoria Cross to the undermentioned man for his conspicuous acts of bravery and devotion to duty whilst serving with the Expeditionary Force: —
No. 1685 Rifleman Gabar Sing Negi, 2nd Battalion, 39th Garhwal Rifles. For most conspicuous bravery on 10th March, 1915, at Neuve Chapelle. During our attack on the German position he was one of a bayonet party with bombs who entered their main trench, and was the first man to go round each traverse driving back the enemy until they were eventually forced to surrender. He was killed during this engagement.

राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रॉस ( मरणोपरांत ) का नाम न्यू चेपल, फ्रांस के युद्ध स्मारक, प्रथम विश्व युद्ध स्मारक, इंग्लैंड और इंडिया गेट, नई दिल्ली पर भी अंकित है. शहीद नेगी की याद में चंबा, जिला टेहरी गढ़वाल में 21, 22 और 23 अप्रैल को मेला लगता है जिसमें गढ़वाल राइफल्स का दस्ता भी लैंसडाउन, पौड़ी गढ़वाल से आकर अधिकारिक तौर पर शामिल होता है. 

जिस समय हम स्मारक देखने गए कुछ लोग स्मारक के सामने बैठे हुए थे. ये लोग प्रांतीय / केन्द्रीय सरकार से कुछ अपेक्षाएं रखते हैं जैसा की नीचे फोटो में दिया गया है. मन्ज्युड़ गाँव में अभी तक सड़क नहीं पहुंची है. 

ऋषिकेश से टेहरी आते जाते चंबा में स्मारक देखा जा सकता है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रॉस ( मरणोपरांत ) का चंबा, टेहरी गढ़वाल में स्मारक 

स्मारक चंबा के बाज़ार के बीचोबीच है 

राइफलमैन नेगी 39वीं गढ़वाल राइफल की दूसरी बटालियन में तैनात थे. 1915 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान यह बटालियन न्यू चेपल, फ्रांस के मोर्चे पर डटी हुई थी जिस पर जर्मनी का कब्जा था. राइफलमैन नेगी ने अपने साथियों के साथ असाधारण वीरता दिखाते हुए इस मोर्चे पर कब्ज़ा कर लिया और दुश्मन को खदेड़ दिया. यहीं वो शहीद हो गए  

मंज्युड़ गाँव से राइफलमैन नेगी समेत 11 जवानों ने पहले विश्व युद्ध में भाग लिए जिसमें वे शहीद हुए  

जरधार गाँव के 16 जवानों ने पहले विश्व युद्ध में भाग लिया 

गब्बर सिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल 1895 को चम्बा के पास मंज्युड़ गाँव, जिला टेहरी गढ़वाल में हुआ. 10 मार्च 1915 को फ्रांस में 19 वर्ष की आयु में शहीद हो गए. उनका विवाह श्रीमति सतूरी देवी से हुआ था जिनका बाद में निसंतान देहांत हो गया   

सम्बन्धियों और गाँव वालों की सरकार से कुछ अपेक्षाएं हैं जिन्हें लेकर चिठ्ठी पत्री और धरना चल रहा है. प्रदेश और केंद्र सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए 

चंबा का एक सुहावना दृश्य 

ऋषिकेश - टेहरी मार्ग पर स्वागत द्वार और राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रॉस ( मरणोपरांत ) का शताब्दी स्मारक  




Friday 14 April 2017

ऋषिकेश के रंग

गंगा तट पर बसा ऋषिकेश प्राचीन तीर्थस्थल है. यह देहरादून जिले का एक हिस्सा है और शिवालिक पहाड़ियों से घिरा हुआ है. ऋषिकेश चार धाम - बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा के लिए प्रवेश द्वार है. समुद्र तल से ऋषिकेश की उंचाई लगभग 1360 फीट है. गर्मी का तापमान 38 से 39 डिग्री तक जा सकता है और सर्दी में 4 से 5 डिग्री तक. नज़दीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार में है और नज़दीकी एयरपोर्ट देहरादून में.

ऊँचे पहाड़ों और गहरी घाटियों में से उछलती कूदती गंगा शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बसे ऋषिकेश तक आ पहुंचती है. ऋषिकेश से आगे गंगा की चाल धीमी पड़ जाती है. पर गंगा नदी आगे के मैदानों में खेती, जंगल, पशु-पक्षी और मनुष्यों की सेवा में जुट जाती है हालांकि मनुष्यों ने इसे दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. गंगा के बहाव के दाहिनी ओर ऋषिकेश बसा हुआ है और बाएँ तट पर जंगल हैं. इन जंगलों में अब कई आश्रम बन गए हैं. गंगा के दाहिने ओर से बाएँ तट पर जाने के लिए दो पुल हैं - लक्ष्मण झूला और राम झूला. ये पुल ऋषिकेश की ख़ास निशानियाँ हैं और तेज़ हवा हो तो दोनों पुल झूलते रहते हैं. इसी कारण पुल या सेतु के बजाए झूला कहा जाता है.

ऋषिकेश में मंदिर, आश्रम, घाट, धर्मशालाएं, योग संस्थान और आयुर्वेद उपचार के बहुत से संस्थान हैं. पर्यटकों के लिए बोटिंग और राफ्टिंग भी उपलब्ध है. जहाँ मन लगे वहां पैसा खर्चें और आनंद लें. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

गंगा के बाएँ किनारे पर परमार्थ आश्रम में शाम की आरती का एक दृश्य 

राम झूला से नज़र आती रबड़ की नाव 

राम झूला. लोहे की रस्सी से बना ये पुल 750 फीट लम्बा है और जिसे 1986 में बनाया गया था 

गंगा के बाएँ तट से नज़र आता लक्ष्मण झूला 

चना मुरमुरा का आनंद लें 

सफ़ेद रेत और गंगा का हरा पानी 

लक्ष्मण झूला. कहा जाता है कि लक्ष्मण ने जूट की रस्सी के सहारे यहाँ गंगा पार की थी. लोहे की रस्सी से 1889 में पुल बनाया गया. 1930 में फिर से नया पुल बनाया गया. यह पुल 450 फीट लम्बा है और पानी से लगभग 60 फीट ऊँचा है. पैदल तो इसपर चलते ही हैं दुपहिया भी चलते हैं 

राफ्टिंग के लिए रबर बोट पर ॐ का सुरक्षा कवच 

लक्ष्मण झूले के पास एक मंदिर -  ऊपर और ऊपर 

विदेशी लड़कियां गंगा में दिया बहाने की तैयारी में  

साधू के फोटो के बिना तो ऋषिकेश का ब्लॉग अधूरा ही रह जाएगा ! देखने में तो 30 के आस पास लग रहा था. दस का नोट लेने के बाद कहने लगा की चार धाम की यात्रा पर निकले हैं, नंगे पाँव हैं चप्पल के लिए पैसे दे दें   

गंगा के बाएं तट पर बहुत से आश्रम हैं जैसे - स्वर्ग आश्रम, परमार्थ निकेतन, गीता भवन और 84 कुटिया.  अपनी गाड़ी से जाने के लिए इस नहर के साथ साथ जाना होगा.  सड़क ज्यादा अच्छी नहीं है पर सीनरी बहुत सुंदर है 

इसी नहर किनारे चीला में एक छोटा पन-बिजली घर भी नज़र आ जाता है  

आरती का समय