Pages

Wednesday 30 November 2016

कम्बल

गली में से किसी फेरी वाले की आवाज़ आ रही थी 'कम्बोल' पर साफ़ तौर पर समझ नहीं आया कि क्या बेच रहा है. बाहर निकल कर देखा तो दो नेपाली कम्बल बेच रहे थे. ये बात है देहरादून की जहाँ नवम्बर में रात में लगभग दस बारह डिग्री ठण्डक हो जाती है . इन दिनों ऊपरी पहाड़ियों पर बर्फ गिरनी शुरू हो जाती है जिसके कारण खेती और दूसरे काम घट जाते हैं. इसलिए उत्तराखंड और नेपाल की ऊँची पहाड़ियों से काफी लोग रोज़गार की तलाश में दो तीन महीने के लिए निचले शहरों में आ जाते हैं. जैसे की ये नेपाली जिन्हें स्थानीय भाषा में दुटियाल भी कहते हैं.

ये दुटियाल पिथोड़ागढ़ के रास्ते लम्बा पहाड़ी सफ़र करके देहरादून पहुंचे हैं. बाएँ सुम्बिद है जो तीन बार पहले भी आ चुका है और दाएं उसका चचेरा भाई पहली बार कमाई करने आया है. चार छे दुटियाल मिलकर शहर के बाहरी इलाके में कम किराए के मकानों में रहते हैं    

ज्यादातर सामान एक ही लाला से कमीशन के आधार पर लेते हैं. इलाका बाँट कर सुबह सुबह 15 - 20 किलो का बोझ लेकर पैदल ही गली मोहल्ले में फेरी लगाते हैं. दो या तीन मिलकर टोली में चलते हैं जिससे कलर और साइज़ में वैरायटी भी हो जाती है और सुरक्षा भी   

सारे काम खुद ही करने पड़ते हैं - आवाज़ लगाना, महिलाओं से मोल भाव करना और आवारा कुत्तों से बचना   

सामान के बोझ से नौसिखिया दोहरा हुआ जा रहा है. अभी उसे हिंदी भी सीखनी है क्यूंकि पापी पेट का सवाल है ना 


Friday 25 November 2016

करेंसी नोट

जिधर देखो चर्चा है नोट की और नोटबंदी की, अखबार में, टीवी पर, सोशल मीडिया में, गली-मोहल्ले में और बाज़ार में. इस विषय पर तर्क, वितर्क, कुतर्क और चुटकले बाज़ी खूब चल रही है. फिलहाल तो अपन की जेब में एक अदद डेबिट कार्ड है और पेंशन बैंक के खाते में है. डेबिट कार्ड भी सफ़ेद धन है और बैंक में आई पेंशन भी सफ़ेद धन है इसलिए फिकरनॉट !

पेंशन जमा होने के बाद वैसे तो बैंक के खाते से 500 और 1000 के नोट ही निकाले थे पर भई वो तो बियर और चखने के स्टॉक जमा करने में ही फिनिश हो गए. अब जो 100-50 के नोट बचे हैं सो अगली पेंशन तक हुक्का पानी चलता रहेगा इसलिए फिकरनॉट !

फिर बैठे बैठे ख़याल आया की इन्टरनेट पर देखें तो सही माजरा क्या है. करेंसी नोट पर कई मजेदार चीज़ें मिलीं जैसे कि दुनिया में सबसे पहले सिक्के का चलन भारत में ही प्राचीन काल में हुआ था और साथ ही चीन में भी. उससे पहले बार्टर चलता होगा मसलन 'तूने मेरी दाढ़ी बनाई ये ले चार टमाटर' या फिर 'मैं तुझे एक लिटर दूध देता हूँ तू मेरा कुरता सिल दे' वगैरा. फिर किसी आप जैसे सयाने बन्दे ने सिक्के निकाल दिया होगा तो फिर तो दुनिया ही बदल गई.

चाणक्य का नाम जरूर सुना होगा आपने. चन्द्रगुप्त मौर्य ( ईसापूर्व 340-290 ) के समय में चाणक्य ने अपनी पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में सिक्कों का वर्णन किया है. रुप्यारुपा याने चांदी का सिक्का, स्वर्णरूपा - सोने का, ताम्ररूपा - ताम्बे का और सीसारूपा सीसे का सिक्का. शायद रूपा शब्द ही रुपया हो गया होगा.

वैसे आधुनिक इतिहास में शेरशाह सूरी ने अपने राजकाल 1540 -1545 में कई तरह के सुधार किये. इनमें से एक था चांदी का सिक्का जारी करना. इस सिक्के का नाम भी रुपया रखा गया.

जनसँख्या बढ़ी तो व्यापार बढ़ा तो सिक्कों की मांग भी बढ़ी. फिर सिक्के बनाने महंगे हो गए शकल सूरत भी बहुत अच्छी नहीं होती थी. इसलिए सिक्कों से कागजी नोट की तरफ चल पड़े. कागजी नोट चीन में 11वीं शताब्दी में नज़र आने लगे थे. भारत में सबसे पहले कागजी रुपये छापे प्राइवेट बैंकों ने. ये बैंक थे बैंक ऑफ़ हिन्दोस्तान (1770 - 1832 ), जनरल बैंक ऑफ़ बंगाल एंड बिहार (1773 - 1775 ) और बंगाल बैंक ( 1784 -1791). शुरू के नोटों में केवल एक साइड ही प्रिंट होता था और दूसरी साइड कुछ भी नहीं. शायद मशीनरी में कमी रही हो.

गोवा, दमन और दीव में पुर्तगालियों ने 1883 में रूपिया नाम से कागजी करेंसी चलाई जो कमोबेश 1961 तक चलती रही.

इसी तरह पोंडिचेरी, माहे, करैकल, यानम और चन्दरनगर के इलाके जो कि फ्रांस के आधीन थे फ्रेंच कागजी रुपये इस्तेमाल करते थे. एक रूपये का नोट प्रथम विश्व युद्ध के बाद और पांच का नोट 1937 में जारी किया गया था.

हैदराबाद राज्य में अपनी कागजी करेंसी का चलन 1916 से था. ये नोट 1939 तक छपते रहे और 1952 तक बाज़ार में चलते भी रहे.

उधर 1944 में जापानियों ने लड़ाई का एक नया हथियार ढूँढ लिया - नकली नोट. इसके बाद से नकली नोटों से बचने के लिए नोटों में वाटर मार्क और सुरक्षा धागे का इस्तेमाल किया जाने लगा.

भारत में 1831 में कागजी करेंसी - Paper Currency एक्ट बना था और 1835 में सिक्का एक्ट Coinage Act बना जिसके तहत पूरे भारत में एक जैसे सिक्के लागू किये गए. 1862 में ब्रिटिश राज के तहत सिक्के जारी किये गए. काफी समय तक सिक्के व नोट ब्रिटेन से छप कर आते रहे फिर 1928 में नाशिक, महाराष्ट्र में नोट छापने की प्रेस लगाई गई.

भारतीय रिज़र्व बैंक पहली अप्रैल 1935 को कलकत्ता में स्थापित किया गया और बैंक को करेंसी नोट का प्रबंधन दे दिया गया. बैंक ने पहले पहल पांच रुपये का नोट 1938 में जारी किया था. स्वतंत्र भारत का पहला नोट एक रूपए का था जिसे 1949 में छापा गया था.

जब कागज़ के नोट छपने शुरू हुए थे तो नोटों की कीमत के बराबर सोना रखा जाता था. परन्तु समय के साथ नोटों की संख्या और मूल्य इतना बढ़ गया कि उतना सोना रखना असंभव हो गया. 1914 से 1928 तक लगभग सभी देशों ने सोने के मानक को हटा दिया और सोने के भण्डार घटा दिए. भारत में 557.7 टन सोना रिज़र्व में रखा गया है जो कि विदेशी मुद्रा समेत कुल रिज़र्व का 6.3 % है.

विश्व में सबसे ज्यादा सोने के रिज़र्व रखने वाले देशों में भारत का स्थान दसवां है.

एक और मजेदार तथ्य भी पढ़ने को मिला -
1948 में डॉलर का मूल्य 01.30 रुपये था,
2000 में डॉलर का मूल्य 43.50 रुपये था,
2014 में डॉलर का मूल्य 59.44 रुपये था और
23.11.2016 को डॉलर का मूल्य 68.56 हो गया था.

रिज़र्व बैंक की 31 मार्च 2016 की रिपोर्ट में बताया गया है की भारत में 16.42 लाख करोड़ रुपये मूल्य के नोट प्रचलन में थे जिसमें से  86% नोट 500 और 1000 के हैं.

नोटबंदी भारत में पहली बार जनवरी 1946 में हुई जिसमें 1000 और 10000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए थे. दूसरी बार 16 जनवरी 1978 से 1000, 5000 और 10000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए थे. तीसरी बार अब 9.11.2016 से 500 और 1000 रूपए के नोटों की नोटबंदी हो गई.

कभी चकबंदी कभी नसबंदी और कभी नोटबंदी ! दुनिया यूँ ही चलती रहेगी,  आप बर्फ लेंगे क्या ?
दुनिया यूँ ही चलेगी



Sunday 20 November 2016

काँटा

बैंक का बिज़नेस बढ़ने के कारण झुमरी तलैय्या के रीजनल मैनेजर गोयल साहब की काफी वाह वाही हुई. गोयल साब की नाक ऊंची हो गई और कालर खड़े हो गए. पर बड़े अधिकारियों ने कुछ और ही सोच रखा था. उन्होंने रीजन को बाँट कर दो हिस्सों में कर दिया - झुमरी उत्तर और झुमरी दक्षिण.

कहाँ तो गोयल साब पूरे झुमरी के इकलौते सुलतान थे कहाँ अब उन्हें सिर्फ आधी झुमरी का चार्ज थमा दिया गया. अब ये तो सरासर ज्यादती थी कि गोयल साब बिजनेस बढ़ा रहे हैं और ऊपर वाले सल्तनत का साइज़ घटा रहे हैं. खबर सुनकर मायूस हो गए गोयल साब. पानी पिया और चश्मा उतार कर टेबल पर रख दिया फिर जेब से कंघी निकाल कर टकले सर पर फेरी. चार पांच बाल ही खड़े थे उन्हीं पर कंघी घुमा दी. कंघी करने के बाद वो फिर से यथास्थान खड़े हो गए.

घर में श्रीमतीजी को व्यथा सुनाई तो वे गुस्सा हो गईं,
- अरे तुम इतना काम कर रहे थे और बड़े साब की भी सेवा कर रहे थे तो ऐसा क्यूँ किया उन्होंने ? बात तो करनी थी ? या मैडम से मैं मिलूं ?

- अरे छोड़ ना स्साले को. रीजन छोटा दे दिया सो तो ठीक है पर तीन मोटे अकाउंट जो मैं लाया था वो चले गए दूसरे रीजन में. अच्छी दिवाली हो गई थी वो तेरा डायमंड सेट भी तो उसी में से बना था. पर ऐसा लगता है की अबकी दिवाली फीकी जाएगी.
- सुनो जी झुमरी के दूसरे रीजन में किसकी पोस्टिंग हुई है ?
- सुना है वहां तो कोई धन्नो आ रही है नाम तो मालूम नहीं पड़ा ना ही मैं जानता.
- हाय राम कुछ करो जी ये तो ठीक नहीं वो तो आपके सारे भेद खोल देगी. औरतों के पेट में बात रूकती कहाँ है समय रहते कुछ कर लो आप.
गोयल साब ने बियर का घूँट भरा और बोले,
- वही सोच रहा हूँ मैं भी. कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा जी.

गोयल साब ने अपनी पोस्टिंग बाहर कराने की कोशिश की तो जवाब मिला अगले साल. तीन मोटे लोन खाते अपने रीजन में ट्रान्सफर कराने की कोशिश की पर नाकामयाब रहे. श्रीमती ने कई बार पूछा,
- सुनो जी कुछ बात बनी क्या ?
- लगा हुआ हूँ मैं पर अभी तक तो कुछ नहीं हो पाया. जल्दी कुछ ना हुआ तो गड़बड़ हो सकती है.
- हाँ मुझे भी ठीक नहीं लग रहा है कुछ करो आप.

शनिवार को गोयल साब ख़ुशी ख़ुशी घर आये,
- डार्लिंग चलो आज डिनर करा लाऊँ. और खुशखबरी भी सूना डालूं.
- मामला सुलटा दिया लगता है ?
- देखो अपने ट्रान्सफर बाहर करानी चाही तो नहीं हुई, तीनों खाते अपने रीजन में ट्रान्सफर कराने चाहे तो वो भी नहीं हुए. अब काँटा ही निकाल दिया. दूसरे बैंक के रीजनल मैनेजर से बात करके सारी चीज़ समझाई. आज तीनों खाते हमारे बैंक में बंद हो गए और सोमवार से दूसरे बैंक में चालू. बोलो कैसी रही ?
- वाह बहुत अच्छी रही, ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी !

डायमंड सेट 


Tuesday 15 November 2016

ड्यूटी

मैनेजर साब ग़ुस्से और बेचैनी में बार बार घड़ी देख रहे थे. 10.20 हो चुके थे और हरेंदर कैशियर का अतापता ही नहीं था. इधर कैश कांउटर पर भीड़ बढ़ती जा रही थी. मैनेजर साब भुनभुना रहे थे,

- आज अगर आया तो इसकी छुट्टी कर दूंगा. सुसरा समझाने से समझता ही नहीं. एक रीजनल मैनेजर है वो भी सुसरा सुनने को तैयार नहीं. कितनी बार कहा है की हरेंदर को बदल दे या इसको अपने ही दफ्तर में रख ले. अपने दफ्तर में रख कर इस हरेंदर को सुधारो तो मान जाएं. ना तो हरेंदर ही सुधर रहा है और ना ही रीजनल मैनेजर मान रहा है. अब इन दो पाटन के बीच में मेरी पिसाई हो रही है.

ये तो अच्छा है कि ये ब्रांच किराड़ी गाँव में है दिल्ली से 200 किमी दूर. यहाँ ग्राहक फोन पर या लिखित में शिकायत नहीं करते वरना और मुश्किल बढ़ जाती. ज्यादातर सीधे सादे लोग हैं दो चार सौ रूपये निकालने या जमा करने के लिए चुपचाप एक घंटा इंतज़ार कर लेते हैं. शहरी बाबू तो लड़ने के लिए तैयार रहते हैं.

दूसरी बात ये है कि गाँव किराड़ी के पास से एक हाईवे बनना है और बहुत से किसानों को जमीन का मुआवजा मिलना है. कुछ को मिल भी चुका है जिनमें से हरेंदर भी एक है. मुआवज़ा लाखों में आ रहा है इसलिए गाँव के बाहर मेला जुड़ता जा रहा है. एक दारु की दूकान खुल गई है, साज़ सिंगार की दूकान आ गई है, ढाबा आ गया है वगैरा. मुआवज़े मिलने के बाद पीने खाने का शौक अब पूरे हो रहे है. हरेंदर क्यूँकर पीछे रहता वो भी मौज लेने लग गया था.

दस बज कर तीस मिनट पर हरेंदर अंदर आया और मैनेजर साब का लेक्चर शुरू हो गया और डांट डपट के बाद उसकी छुट्टी कर दी गई. अब हरेंदर ठेके के तरफ हो लिया. चार पेग लगाने के बाद फिर से ब्रांच में आ गया. अंदर आकर अंग्रेजी बोलण लाग्या,
- मैनजर साब हरेंदर ऑन डूटी... काम करणा है मन्ने... हरेंदर ऑन डूटी... हरेंदर डूटी डेली... हरेंदर डेली डूटी ...
मैनेजर साब ने घंटी मार के गार्ड को बुलाया,
- नफे सिंह इसको बाहर निकालो. ससपेंड कर दिया तो फिर रोता रहेगा ये. जाओ इसे दूर छोड़ के आओ.
गार्ड ने हरेंदर को पकड़ा और ट्यूबवेल के पास छोड़ आया और आकर साहब को बता दिया. हरेंदर ने ट्यूबवेल पर बैठे बैठे दो पेग और खींचे और एक बजे फिर आ गया बैंक में,
- हरेंदर डेली डूटी...डेली...डेली...

इस बार गार्ड और एक पुलिस वाले ने फिर हरेंदर को पकड़ कर ट्यूबवेल के पास वापिस पहुँचा दिया. चार बजे तक ब्रांच में शांति रही. कैश और ब्रांच बंद करने का समय आ गया पर गार्ड नफे सिंह नदारद. उसकी राइफल और कारतूस भी जमा होने थे. अब चपरासी धर्म सिंह को दौड़ाया गया,

- जाओ नफे सिंह गार्ड को देखो ज़रा राइफल लेकर कहाँ घूम रहा है. राइफल भी तो लॉकर में बंद करनी है. बुला के लाओ उसे.

आधे घंटे बाद चपरासी धर्म सिंह गार्ड नफे सिंह की राइफल और कारतूस की बेल्ट लेकर आ गया और साहब से नूं बोल्या,

- साब जी यो री राइफल और यो रे कारतूस. यो तो ली आया जी मैं इब यो तो जमा कर लो जी. अर वे तीनों तो टूवेल पर टुन्न पड़े. हरेंदर बी, गार्ड नफे सिंह बी अर पुलिस वाला बी तिन्नों कतई टुन्न पड़े.

हमप्याला 


Saturday 12 November 2016

Bargains in Kedarnath

Bargains are part of our lives. Bargaining scenes can be seen in markets, while hiring of autos, purchase of property and so on. Getting lower price after haggling gives a feeling of satisfaction in having won the duel!

Sometime back we were in Kedarnath and had a couple of chances to bargain at an height of 11755 feet which must be eligible for record books! Some examples:

With Nandi in Kedarnath

*** In Guptkashi, we were informed by hotel manager that helicopter service to Kedarnath Temple was still available. It was October end which is usually off-season for tourists because of cold weather setting in. The number of tourists had dropped considerably as doors of the Temple were to be closed in first week of November. Hotel manager added with a smile,
-Try to bargain the chopper fare. They are jobless these days.
It really was an amusing idea to bargain for chopper fare. We walked down for about two kilometres till Fata. There were three helipads where small, colourful 8 seater birds were parked in the backdrop of green hills. Pilots & ground staff were wearing equally colourful T-shirts making the scene interesting. We did bargain with Manager & eventually paid Rs.6000/- per person for return journey instead of normal fare of Rs.7300/-. It was fun to haggle with Helipad Manager & see him lowering the fare as you do with an auto driver in Delhi! Flight was all of 9-10 minutes but was worth watching over beautiful Himalayan range in bright sunshine with cheerful river Mandakini bubbling down below in the valley.

*** On landing at helipad at Kedarnath it was ice-cold winds which welcomed us. We could see snow on the grass here & there. Snow clad peaks were massive & towered over the Temple on three sides. Small cheerful rivulets gurgled from all sides & mingled into Mandakini. We were immediately surrounded by Pandit jis asking simultaneously:
- Which district are you from?
- Which caste?
- Which Gotra?
- From Kerala? From Punjab? From Garhwal?
- Brahmin? Aggarwal?
- Pooja karwani hai?
Though we refused to all of them, one followed us quietly. In between our dialogues he kept informing names, historical & mythical stories about the place. In sanctum he offered to help perform pooja. Here they allow pooja only by couples. Eventually we came out & paid Rs. 500/- but Pandit ji gave unsatisfied look. A bit of argument ensued as he wanted Rs.1000/- but we stuck to our end of bargain & that was it.

*** Near the temple several Sadhus or beggars were sitting on stone floor in a line, having ash (Bhabhoot) smeared all over their bodies and enjoying the warmth of sun. As soon as tourists came out of temple they raised a chorus of 'Jai Bhole Nath'. And then almost shouted:
- Chai ke liye de do,
- Khane ke liye de do,
- kambal ke liye do baba,
- daan karo jodi bani rahegi’etc.
They really looked pathetic yet were vociferous, aggressive, greedy & spoiled the serenity & piousness of the place. We gave them Rs.20/- each. All accepted thankfully except one who shouted ‘isase kya hoga?’ & threw back the note. I picked it up & pocketed back much to amusement of onlookers. Somebody’s loss is somebody’s bargain!

*** Turning back towards helipad we were discussing about behaviour & bargaining by Pandit jis & sadhus living there. Such scenes can be witnessed in practically all Hindu temples. To this discussion my wife replied:

- Chopper-wala bargained with us for profit of his company, his own position & his salary. Pandit ji bargained for more so as to feed his family as temple will remain closed for six months and he will be jobless. Sadhus bargained for they would have to trek back to plains in winter & would be needing money for creature comforts. You bargained with Shiva for a happy life. So everybody bargains.
It is all Maya!

Near Kedarnath Temple


   

Tuesday 8 November 2016

पहला नम्बर

दुबई के एक भारतीय व्यापारी ने नई रोल्स-रोयस कार का रजिस्ट्रेशन नंबर लेना था. जब कार नम्बर प्लेट "D 5" की बोली लगने लगी तो इन व्यापारी श्री बलविंदर साहनी ने 330 लाख दिरहम की बोली लगा कर नम्बर जीत लिया. डॉलर में कहें तो ये बोली 90 लाख डॉलर की थी और आजकल एक दिरहम लगभग 18 रुपये का है तो आप हिसाब लगा लें की कार की नम्बर प्लेट लेने के लिए कितने पैसे लगे होंगे. साहनी साब का कहना है की उन्हें 9 नम्बर बहुत पसंद है इसलिए उन्होंने D याने 4+5=9 की बोली लगा दी.

एक हम हैं कि कभी साइकिल का नंबर भी नहीं खरीदा फटफटिया या कार का तो दूर रहा. अगर साहनी साहब को 9 नम्बर पसंद है तो भाईसाहब कुछ नम्बर हमें भी पसंद हैं क्यूंकि शायर चचा कह गए हैं,
पसंद अपनी अपनी ख़याल अपना अपना,
सवाल अपना अपना जवाब अपना अपना !

वैसे अपन की पसंद है नम्बर 1वो इसलिए क्यूंकि पेंशन का मैसेज पहली तारीख को आता है इसलिए बड़ा ही प्यारा और शुभ नम्बर  है और वैसे भी 1 नम्बर अपने आप में टापो-टॉप नम्बर है. ये बात और है कि महीने में ये नम्बर केवल एक ही बार आता है और पेंशन भी एक ही बार जमा होती है. और जब इकलौती पेंशन का मेसेज आता है तो 1 बार तो मुस्कराहट भी आ ही जाती है. पहला या अव्वल नम्बर वैसे भी धूमधाम वाला होता है. घर में पहली शादी, पहली नौकरी, पहली तनख्वाह, पहली गाड़ी का नम्बर वगैरा बड़ी देर तक याद रहती हैं. नम्बर 1 का धन भी बड़ा अच्छा है 2 नम्बर के धन के मुकाबले पंगे कम हैं. मन में शांति रहती है. नम्बर 1 से जुड़ी फिल्म भी शायद देखी हो आपने - बीवी नम्बर 1.

और पहला इश्क़ ? फिलहाल तो इस विषय पर मौन रखना ही ठीक है. इस पर आपसे चर्चा तब करेंगे जब आप कल पार्क में मिलेंगे.

अपन का अगला पसंदीदा नम्बर है 8. घड़ी में ये 8 का आंकड़ा दो बार आता है एक बार सुबह और दूसरी बार शाम को. सुबह घड़ी में 8 नम्बर आता है तो नाश्ता लाता है. नहा धोकर डाइनिंग टेबल पर बैठ जाएं, आलू प्याज़ का परांठा हो, अचार हो, दही हो, अखबार हो और एक प्याला चाय का तो साहब पैसा वसूल है. सुबह सुबह इससे याने 8 से बढ़िया कोई नम्बर नहीं दिखता है. क्या विचार है साब ?

शाम का घड़ी का आंकड़ा 8 और भी मज़ेदार है याने 8 PM. दिन भर की थकान दूर करने का एक अच्छा मौका है. इत्मीनान से बैठकर एक छोटा बनाइये और चखने में सलाद, पनीर और नमकीन का सेवन कीजिये. अति उत्तम नम्बर है ये 8 सारे दुःख 9 > 2 > 11 हो जाते हैं !

आपको कौन सा नम्बर पसंद है ?

पहला नम्बर 


Saturday 5 November 2016

नौकरी

पति की एक्सीडेंट में मृत्यु होने के बाद पत्नी शकुंतला को काफी दौड़ भाग करनी पड़ी पर बैंक में नौकरी मिल ही गई. पति खजांची थे और चूँकि शकुंतला दसवीं पास थी इसलिए उसे भी खजांची के पद पर रख लिया गया. थोड़ी बहुत ट्रेनिंग और स्टाफ की थोड़ी मदद से काम सीख लिया और नौकरी शुरू हो गई. इसके साथ ही शकुंतला के मन में स्थिरता और तस्सल्ली आ गई.

अब शकुंतला का ध्यान इकलौते बेटे पर रहता था जो इस साल दसवीं में आ गया था और अब उसे बोर्ड का इम्तेहान देना था. पढने में तो सामान्य ही था पर शकुन्तला उस पर लगातार डांट कर और दबाव देकर 'राजू पढ़ ले पढ़ ले' करती रहती थी. राजू को लुभाने के लिए मोबाइल फ़ोन इनाम में देने की भी घोषणा कर दी. और अगर बहुत अच्छे नंबर आये तो मोबाइल फ़ोन के अलावा स्कूटी भी देने का वादा कर दिया. 
राजू बेटा दसवीं पास कर गया और मोबाइल फ़ोन का मालिक बन गया. पर स्कूटी के लायक नंबर नहीं आये इसलिए स्कूटी नहीं मिली पर राजू की मांग जारी रही. स्कूल भी बदल कर दूर वाले इंटर कॉलेज में दाखिला ले लिया था जहाँ साइकिल से जाना पड़ता था. अब रोज रोज की झिकझिक होने लगी और किसी किसी दिन माँ बेटे में गरमा गरमी की नौबत भी आ जाती.
स्कूटी के साथ साथ जेब खर्च बढ़ाने की मांग होने लगी. शकुंतला ने लोन लेकर स्कूटी दिलवा दी और जेब खर्च भी बढ़ा दिया. तीन महीने में ही स्कूटी से राजू का जी भर गया और वो कहने लगा ,
- क्या लड़कियों वाली गाड़ी ले कर दी है. मोटरसाइकिल होनी चाहिए थी. लड़के लोग मेरी स्कूटी देख कर हँसते हैं और मज़ाक उड़ाते हैं. ना कोई लड़का मेरे साथ स्कूटी पर बैठता हैं ना कोई लड़की.

समझाने का कोई असर नहीं हो रहा था और राजू की मोटरसाइकिल की मांग तेज़ और ऊँचे सुर में हो रही थी. आखिर दूसरा लोन लेकर ये मांग भी पूरी कर दी. अब कॉलेज का शिमला का टूर आ गया तो राजू ने और पैसे मांगे. शकुंतला ने दे तो दिए पर अब हाथ तंग होने लगा लेकिन कोई सुनवाई नहीं थी. शिमला टूर के बाद राजू घर में एक दो सहेलियां भी लाने लगा तो खर्चा और बढ़ गया. पैसों की मांग बढ़ रही थी और राजू के नंबर घट रहे थे. राजू दिन ब दिन बेलगाम हो रहा था पर शकुन्तला कुछ नहीं कर पा रही थी. जब भी हाथ तंग होने का जिक्र करती तो राजू का पारा चढ़ जाता था. 

बैंक में पेट्रोल पंप वाला मुन्ना अक्सर काफी कैश जमा कराने आता था. इस बार वो पांच लाख जमा कराने लाया. शकुंतला ने दो बार गिने और डरते डरते एक पांच सौ का नोट अपने पैरों के पास गिरा दिया. मुन्ना को आवाज़ लगा कर बोली, 
- अरे मुन्ना भैया पांच सौ का एक नोट कम है इसमें. 
शकुन्तला का मन घबरा रहा था और डर भी लग रहा था. पर जब मुन्ना ने बिना ना नुकुर के एक पांच सौ का नोट और दे दिया तो शकुन्तला की जान में जान आ गई. उस ने एक गिलास पानी पिया और नार्मल हो गई. मुन्ना के जाने के बाद नोट उठा कर पर्स में डाल लिया. दो दिन इंतज़ार किया बैंक में किसी तरह की हलचल नहीं हुई. शकुन्तला आश्वस्त हो गई और फिर चार दिन बाद अगला शिकार करने के लिए तैयार हो गई. इस बार पांच सौ के दो नोट पार कर दिए.

फिर तो हर महीने चार पांच हज़ार के नोट गायब होने लगे और राजू की जेब खर्ची की पूर्ती होने लग गई. पर मैनेजर साब के पास शिकायतें भी आने लग गयी. मुन्ना भैय्या और मैनेजर साब ने एक दिन प्लान बनाकर नोटों के नंबर लिख लिए और छापा मार कर रंगे हाथों पकड़ लिया. शकुंतला को ससपेंड कर दिया गया. जांच के दौरान पता लगा की जिस दिन कैश कम होने की शिकायत होती थी उसी दिन या अगले दिन राजू के खाते में पैसे जमा हो जाते थे. जांच के बाद शकुन्तला को दोषी पाया गया और नौकरी से निकाल दिया गया.     

चाह मिटी चिंता मिटी मनवा बेपरवाह I
जाको कुछ नहीं चाहिए वा ही शहंशाह II - कबीर