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Thursday 7 July 2016

जामुन

जुलाई के बरसाती मौसम में बाहर गली में जामुन वाले की आवाज सुनाई पड़ी,
- जामुन काले काले रा !
- जामुन बड़े रसीले रा !
फट से बाहर निकली तो देखा कि रेड़ी पर हरे हरे पत्तों के ऊपर जामुन की छोटी सी ढेरी लिये भाई आवाज लगा रहा था. जामुन ताज़ा और बड़े बड़े थे. काले- जामुनी रंग में सुंदर लग रहे थे. पर दाम भी कम नहीं था २०० रू किलो. पाव भर के पैसे दिये और नमक की पुड़िया के साथ जामुन ले लिये. 

जामुन बरसाती मौसम का तोहफ़ा है. इसे काला जामुन, जम्बू, जम्बुल, राजमन या ब्लैकबेरी भी कहते हैं. वैसे विज्ञान में इसका नाम है - Syzygium cumin. यह भारत के अलावा दक्षिण एशिया के कई देशों में पाया जाता है. जामुन का पेड़ सदाबहार, घना और काफी बड़ा होता है. अगर आप इंडिया गेट गए हों या फिर 26 जनवरी की परेड देखी हो तो जामुन के पेड़ ज़रूर देखे होंगे. जामुन के पेड़ के पत्ते, पेड़ की छाल, फल और गुठली, सभी बड़े उपयोगी हैं. जामुन में, प्रोटीन, कैल्शियम और कार्बोहायड्रेट भी हैं. मधुमेह का एंटी है. 

घर आकर जामुन धो कर नमक के साथ आनंद लिया. जामुन चाहे कितना ही मीठा हो खा कर मुंह का स्वाद थोड़ा कसैला सा हो जाता है और जीभ जामुनी हो जाती है. स्वाद ठीक रखने के लिए हल्का सा नमक सही रहता है.

जामुन खाते खाते बचपन का ख़्याल आ गया. पिताजी की पोस्टिंग एयर फ़ोर्स स्टेशन, रेस कोर्स, नयी दिल्ली में थी. वहीँ सरकारी क्वार्टर में रहते थे. वहाँ पर इमली और जामुन के बहुत से बड़े बड़े पेड़ थे. घर से सिर्फ सौ मीटर दूर एक ट्यूब वैल था जिसके अहाते में भी जामुन के पेड़ थे जो पके जामुनों से लदे हुए थे. वायु सेना का पड़ाव होने के कारण यह निषिद्ध क्षेत्र था और वहां का रास्ता गार्ड रूम के सामने से था. गार्ड वहां से अंदर जाने को मना करते थे पर पेड़ के पके जामुन हमें न्यौता देते थे कि आ जाओ !

स्कूलों की तो उन दिनों गर्मी की छुट्टियाँ थी. भैय्या ने कहा,
- देखो सुबह पांच बजे तो गार्ड सोया रहता है. चुपचाप गार्ड रूम के पीछे से अंदर घुस जाएंगे. अगर तुम दोनों तैयार हो तो कल सुबह हमला बोला जाए ?
सुबह सुबह भैय्या ने हम दोनों बहनों को जगा दिया अभी बादलों के वजह से पूरा उजाला भी नहीं हुआ था.
- चुपचाप चल पड़ो. गार्ड रूम में इस वक़्त कोई भी नहीं है अभी. कोई चद्दर ले लो. जामुन ऊपर से टपकेंगे तो उस में इकट्ठे कर लेना. जल्दी कर लो.

रात को जो चादर ओढ़ी थी वही चादर लेकर हम निकल पड़े. भैय्या ने चप्पल उतारी और फुर्ती से पेड़ पर चढ़ गए. ऊपर चढ़ कर भैय्या ने पेड़ की डाल हिलानी शुरु कर दी. जामुन की टपाटप बरसात होने लगी. हम दोनों बहनों ने चादर फैला कर दो-दो सिरे पकड़ लिए. चादर में जामुन जमा होने लगे. भैया बन्दर की तरह जिस डाल की तरफ बढ़ते, हम भी चादर फैला कर उसी तरफ फुदकने लग जाते. पर इतने में दूर कहीं गाड़ी की आवाज़ आई.
- भैया उतरो उतरो कोई आ रहा है !
- आया आया तुम लोग निकल लो.
चादर के चारों कोने इकट्ठे करके गठरी बना कर मैंने कंधे पर डाल ली और हम दोनों घर की और दौड़े. पीछे मुड़ कर देखा तो भैय्या भी पेड़ से कूद कर नंगे पैर भागे आ रहे थे और चप्पलें हाथों में पकड़ी हुई थीं.

घर पहुँचने पर जोरदार स्वागत हुआ. चद्दर खराब करने पर खूब डांट पड़ी और एक हफ्ते तक डांट चलती रही. अनुशासन तोड़ने और बिना आज्ञा फल तोड़ने पर भैय्या को एक करारा चांटा लगा और डांट और भी लम्बी चली - शायद दस बारह दिन तक लगातार चलती रही.

पर मीठे रसीले जामुनों के साथ थोड़ा सा नमक तो चलता है !
जामुन काले काले रा !

3 comments:

A.K.SAXENA said...

बचपन की शरारत,सारी उम्र की यादगार। भावों की अभिव्यक्ति,लेखन कला बहुत ही मनोरंजक। मजा आ गया। धन्यवाद।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद सक्सेना जी.

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/07/blog-post_24.html