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Thursday 15 October 2015

नास्तिक वाद की झलक

भगवान से यदि न्याय मिलता तो न्यायालय नहीं होते।
सरस्वती से यदि विद्या मिलती तो विद्यालय नहीं होते।

उपर वाली लाइनें अर्जक संघ के दफ्तर के बाहर लिखी हुई हैं. अर्जक संघ का दफ्तर सिकंदरा, कानपूर देहात में और इसके अलावा कई अन्य स्थानों पर भी है. इस संघ की स्थापना श्री रामस्वरूप वर्मा (1923-1998) ने 01जून 1968 को की थी. श्री वर्मा MA,LLB थे और आचार्य नरेन्द्र देव, डा. राम मनोहर लोहिया के सहयोगी रहे थे. चौधरी चरण सिंह के मंत्री मंडल में 1967 में वित्त मंत्री भी रहे. अर्जक संघ मूर्ति पूजा, छुआछुत, पुनर्जन्म, आत्मा को बिलकुल नहीं मानते हैं. और अगर मानते हैं तो केवल भारतीय संविधान को.

भारत की 2011 की जनगणना में लगभग 28 लाख से ज्यादा लोगों ने अपना धर्म 'कोई धर्म नहीं' लिखवाया.  इनमें से 5.80 लाख लोग उत्तर प्रदेश से हैं.जनगणना फॉर्म में छे धर्म छपे हुए हैं -1. हिन्दू, 2. मुस्लिम, 3. क्रिस्चियन, 4. सिख, 5. बुद्धिस्ट और 6. जैन. साथ ही में किसी और धर्म के लिए फॉर्म में लिखा है 'for other religions write in full'. इसी स्थान पर शायद लोगों ने लिखवाया होगा 'कोई धर्म नहीं'. इस बारे में एक लेख इंडियन एक्सप्रेस में 05-09-2015 को प्रकाशित हुआ था. अर्जक संघ की और जानकारी विकिपेडिया से भी ली जा सकती है.

अनीश्वरवाद या नास्तिक दर्शन भारत में नया नहीं है बल्कि वैदिक काल से चला आ रहा है. उस काल में भी कई दार्शनिक हुए जो मात्र प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानते थे और आत्मा या परलोक को नहीं मानते थे. इनमें प्रमुख थे चार्वाक और उनके गुरु ब्रहस्पति. चार्वाक और ब्रहस्पति कब हुए इसकी जानकारी नहीं है. पर इनके बारे में और ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. चाणक्य ने भी 'अर्थशास्त्र' में गुरु ब्रहस्पति को आचार्य माना है. चार्वाक का एक कथन बहुत प्रचलित है और जो उनके दर्शन की झलक देता है:
यावज्जीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत, भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥
अर्थात जब तक जियो सुख से जियो, चाहे ऋण लेकर घी पियो, देह तो किसी दिन भस्म हो जाएगी और पुन: आना होगा नहीं. पर यह दर्शन यहीं तक सीमित ना होकर कि 'खाओ पियो और मस्त रहो' आगे भी बहुत कुछ कहता है. इस दर्शन में पृथ्वी, जल, सूर्य और वायु ही सृष्टि के मूल तत्त्व माने गए हैं. आकाश तत्त्व को मूल तत्त्व नहीं माना  गया है क्यूंकि वह प्रत्यक्ष नहीं है. इसी तरह इन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान ही प्रत्यक्ष प्रमाण है और इन इन्द्रियों से आगे अनुमान और सम्भावना हैं प्रमाण नहीं. शरीर ही आत्मा है और देह नष्ट होने के बाद कोई आत्मा वापिस नहीं आती. चार भूतों के मिलन से बना शरीर चार भूतों में ही विलीन हो जाता है. इसके अलावा कुछ भी तो बचता नहीं है. परलोक और वर्णाश्रम फिजूल हैं और इनसे कोई फल मिलने वाला नहीं है.
ना स्वर्गो ना पवार्गो वा नैवात्मा पालोकिक: नैव वर्नाश्रमादिनाम क्रियाश्च्फल्देयिका

इस दर्शन को लोकायत या चारू+वाक्य(सुंदर वाक्य) भी कहते हैं. वेद से असम्मत दर्शन वेदवाह्य भी कहलाते हैं और ये हैं: चार्वाक, माध्यमिक, योगाचार, सौतांत्रिक, वैभाषिक और आर्हत. जाहिर तौर पर यह दर्शन काफी प्रचलित नहीं है.
इन्टरनेट पर खोज करने पर कि दुनिया में नास्तिकों की संख्या कितनी है कोई प्रमाणिक आंकड़े नहीं मिले. साथ ही इस तरह की संख्या में विषमता या confusion भी नज़र आया जो की अंग्रेजी में इस्तेमाल किये हुए शाब्दिक अर्थ की वजह से भी हो सकता है. जैसे कि (इन्टरनेट में 'शब्दकोष' से लिए गए शब्दार्थ):
Atheist - नास्तिक (विश्व की जनसँख्या का 2% से 11%).
Agnostic - संशयवादी, अनीश्वरवादी, अज्ञेयवाद का अनुयायी.
Non-believer - अविश्वास करने वाला, नास्तिक, संदेहवादी.
Non-religious - गैर धार्मिक (विश्व की जनसँख्या का 10% से 22 %, आंकड़े विकिपीडिया से).
जो भी हो चार्वाक दर्शन से लगता है कि भारत में प्राचीन काल में भी मतों की विभिन्नता थी पर फिर भी आपसी सिर फुट्टवल ना होकर शास्त्रार्थ ज्यादा रहा होगा.

जो प्रत्यक्ष है वही प्रमाण है 


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