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Tuesday 29 September 2015

शक

भारत के उत्तर-पूर्व में मणिपुर राज्य है. वहां के एक छोटे से गाँव में गबरू जवान लड़का था खाम्बा. उसे बारिश के कारण नींद नहीं आ रही थी. रात भर मेघा गरजते रहे और बरसते रहे. तड़के बारिश थम गई और लग रहा था कि सूरज भी निकल आएगा. खाम्बा ने खटिया छोड़ी और दरवज्जे के बाहर आकर मौसम का जायजा लिया. आसमान पर नजर डाली बादल घट गए थे. फिर आस पास के पहाड़ियों पर छितरे सीढ़ीनुमा खेतों को देखा. पहाड़ियाँ धुल गई थीं और खेतों में भी जगह जगह पानी भरा हुआ नज़र आ रहा था. उसने अम्मा को आवाज़ दी
- अम्मा खेत पे जाऊँगा. रोटी टिक्कड़ कर ले.
अम्मा को पता था कि खेत पर जाने का मतलब है कि अब खाम्बा शाम को ही वापिस आ पाएगा. इसलिए खाने की पोटली तैयार करने लगी. दो प्याज, चार मोटी-मोटी मंडुए की रोटियां और बैंगन की सब्जी लपेट कर बाँध दी. हरी मिर्च तो खेत में से ही तोड़ लेगा. पानी का डोल, छतरी, खुरपा और फावड़ा निकाल कर दरवज्जे के बाहर रख दिया.

खाम्बा पूरी तरह से लैस होकर पहाड़ी पगडण्डी से नीचे उतरने लगा. तीन छोटे छोटे खेत अलग अलग थे - एक 50 मीटर नीचे, दूसरा उसके और नीचे लगभग 100 मीटर दूर और तीसरा थोड़ी सा दाहिनी ओर 200 मीटर नीचे. वहां पहुँचने के लिए कई आड़ी तिरछी पगडंडिया नीच की ओर जा रहीं थीं. कई जगह पर दूसरों के खेतों की मेंढ़ पर से भी गुजरना पड़ता था. आज फिसलन भी ज्यादा थी इसलिए हौले हौले उतर रहा था. तभी कनखियों से देखा तो पास वाले गाँव की थोएबी भी अपने खेतों की तरफ जा रही थी. वो मुस्कराया 'चलो आज का दिन बढ़िया गुजरेगा, शादी के लिए पटाते हैं '. जोर से आवाज़ लगा कर बोला,
- ओये थोएबी ज्यादा ना उछल, गिरेगी !
- चुप बे! कहते हुए थोएबी ने अपना हंसिया हवा में घुमा दिया.
खाम्बा को गुदगुदी हुई और हंसने लगा. इस पर थोएबा ने दुबारा हंसिया घुमा कर अपनी गर्दन पर रख लिया दिखाने के लिए कि मार दूंगी. इस बार खाम्बा खिलखिला कर और जोर से हंसा और जल्दी से जमीन पर लेट कर छटपटाने की एक्टिंग करने लगा. इस एक्टिंग पर थोएबी को भी हंसी आ गई और खेत में से छलांगे  लगाती हुई आई और खाम्बा की छाती पर चढ़ बैठी. हंसिया उसकी गर्दन पर रख कर बोली
- खबरदार !

दोनों खिलखिला कर उठे और हंसी मजाक करते हुए अपने अपने खेतों की ओर रवाना हो गए. खाम्बा गुनगुनाता रहा और फावड़ा भी चलाता रहा. हसीन सपने भी देखता रहा कि थोएबी उसकी हो गयी है. खाने के समय उसने थोएबी को बुला लिया और दोनों ने साथ साथ खाना खाया. उसके रोकने के बावजूद थोएबी रुकी नहीं और घर चली गई. उसे लगता था की बस सामने बैठी रहे कहीं ना जाए. काम करूं तो भी सामने हो, घर के अंदर हूँ तो भी वो दिखती रहे और घर के बाहर रहूँ तो भी थोएबी साथ हो.

दोनों परिवारों की सहमती हो गई और थोएबी दुल्हन बन कर खाम्बा के घर आ गई. खाम्बा तो सातवें आसमान में उड़ने लगा. थोएबी को एक सेकंड के लिए छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. शुरू के दिन तो हवा हो गए. दोनों सपनों की दुनिया में थे पर तीसरे हफ्ते थोएबी ने माँ से मिलने की इच्छा जाहिर की. पर खाम्बा को यह भी मंज़ूर नहीं था की थोएबी उसे छोड़ कर अपनी माँ के घर मिलने चली जाए.
- अरे अब तेरा वहां क्या काम ? बस तू मेरी है और मेरे पास ही रहेगी तू.

बड़ी मिन्नत के बाद केवल एक दिन के लिए उसे माँ के पास छोड़ कर आया. पर माँ बेटी को तो बहुत सी बातें करनी होती हैं इसलिए एक दिन में कहाँ काम चलता है. उसे मायके में चार दिन हो गए. दो दिन तो खाम्बा ने बर्दाश्त कर लिये. तीसरे दिन उसे गुस्सा और खीझ होने लगी. चौथे दिन उसे रह रह कर शक भी होने लगा की कुछ और चक्कर तो नहीं है. कोई इसका पुराना आशिक तो नहीं है ? आने दो ख़बर लेता हूँ इसकी. एक ही झापड़ में अक्कल ठिकाने आ जायेगी. चौथी रात उसकी नींद भी उचाट हो गई. पर पांचवे दिन थोएबी खुद ही चल कर आ गई. खाम्बा का सिर कई तरह के विचारों से गडमड हो रहा था. उस पर गरजने और झापड़ मारने के लिए तैयार था पर जैसे ही थोएबी उसके नजदीक आई सारा गुस्सा भूल गया. अगले दिन थोएबी से बहुत पूछताछ की वो क्यूँ चार दिन लगा कर आई ? उसे फटकार भी लगा दी.

पर अगले महीने ही थोएबी की माँ का फिर बुलावा आ गया. बड़ी मुश्किल से खाम्बा एक दिन के लिए भेजने को तैयार हुआ. अब भगवान सब का भला करे जी एक दिन में तो मायके जाकर बात नहीं बनती. थोएबी के मना करने के बावजूद भी उसे मायके में फिर रोक लिया गया. तीसरे दिन भी जब वापिस ना आई तो खाम्बा का पारा ऊपर चढ़ने लगा. उसका शक भी बढ़ने लगा. इसका जरूर कोई आशिक होगा उस गाँव में.

इस बार जब वो वापस आई तो थोएबी का स्वागत डांट फटकार से हुआ. धमकी भी दे दी और इशारा भी कर दिया की अगर कोई आशिक है तो छोड़ दे उसे. ये सब थोएबी को अच्छा नहीं लग रहा था क्यूंकि ना तो वो जान बूझ कर रूकती थी ना ही कोई उसका आशिक था. पर परिवार में दुःख सुख चलता रहता है जिस के कारण थोएबी  को फिर मायके जाना पड़ा. तीसरे दिन भी नहीं लौटी तो खाम्बा का माथा शक से भिन्नाने लगा. उसने सोचा की कल तो कुछ करना ही होगा आशिक का पता लगाना होगा. भेस बदल कर जाता हूँ और अगर बिना पहचाने मेरे संग चल पड़ी तो समझ लो की ये दुष्टा है.

अगले दिन शाम को बाबा का वेश बनाया. डंडा लिया और कम्बल ले के सिर और बदन ढक लिया. छुप छुप के खेतों में से निकलते हुए थोएबा के गाँव की ओर चल दिया. घर के नजदीक पहुँच कर अँधेरा होने का इंतज़ार करने लगा. थोएबी की झोंपड़ी के पास ही बाड़ा था जिसमें दो गाय बंधी हुईं थीं. उसकी माँ घास का एक गठ्ठर सर पर रख कर लाई और वहां पटक दिया. थोएबी को आवाज़ लगाई और बोली की कुछ घास काट कर गाय को डाल दे और कुछ अलग करके सुबह के लिए रख दे. माँ अंदर चली गई और थोएबी ने हंसिया उठा कर काम करना शुरू कर दिया.
खाम्बा ने देखा अब थोएबी अकेली है तो अच्छी तरह से मुंह ढक लिया और उसकी ओर बढ़ा.
- आजा मेरी जान.
- कौन है रे भाग यहाँ से.
- अरे तेरा पुराना आशिक हूँ आजा .
यह कह कर खाम्बा उस पर झपट पड़ा. थोएबी ने भी तुरंत ही हंसिये से पलटवार करना शुरू कर दिया. हड़बड़ी में खाम्बा गिरा. कम्बल कहीं और डंडा कहीं जा गिरा. जब तक खाम्बा संभलता तब तक हंसिये का एक भरपूर वार उसकी गर्दन पर पड़ा और खाम्बा वहीँ ढेर हो गया.  

त्रासदी खाम्बा और थोएबी की





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