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Monday 7 September 2015

तेरा गाँव बड़ा प्यारा

अब तो 35 वीं साल गिरह आने वाली है. पर बातों में से बात निकली तो पहली साल गिरह की याद आ गई. गिरह बाँधने के बाद ऐसा भी सवाल उठा था - ओये तैनू पंजाबी कुड़ी नईं लब्बी ? मिस बी के परिवार में भी सवाल उठा था - बुबा गढ़ल मा तिथे कुई ब्योला नि मिल.

पर पहले अपना परिचय तो दे दिया जाए - मैं लड़का पंजाबी खत्री और मिस बी लड़की उत्तराखंडी ब्राह्मण. दोनों एक ही बैंक में काम करते थे. दोनों ही शादी ना करने का विचार रखते थे. इसलिए आपसी अंडरस्टैंडिंग जल्दी बन गई थी. अब आप दो और दो चार कर लो.

अब जब कि दोनों एक ही गिरह में गिरफ्तार हो गए थे तो मिस बी के गाँव भी तो जाना था. गाँव का पता - झिबल खाल, तहसील लैंसडाउन और जिला पौड़ी गढ़वाल. तो तैयारी शुरू हो गई. पिताजी ने सलाह दी की पुरानी वाली साइकिल ले जाओ क्यूंकि बस स्टैंड में दो तीन दिन खड़ी भी रही तो कोई हर्ज नहीं पर रसीद संभल कर रखना. मम्मी ने सलाह दी की ज्यादा जेवर न पहन कर जाओ आजकल का जमाना ठीक नहीं है. दादी ने सलाह दी की पूड़ियाँ और साथ में अचार रख लो. कई बार रस्ते में भूख लग जाती है और बस वाले बस रोकते नहीं हैं.

पुरानी साइकिल पर नई दुल्हन को बिठा कर निकल पड़े यू पी रोडवेज के बस स्टैंड की तरफ. नवम्बर के ठन्डे दिन थे पर फिर भी चार किमी की खटारा साइकिल खींचने में पसीने निकल गए. उस पर तुर्रा ये कि पीछे बैठी बैठी बोले जा रही थी 'और तेज़ और तेज़' ! बस स्टैंड पहुँच कर साइकिल जमा की और रसीद संभाली. कोटद्वार की बस में बैठ लिए.
कोटद्वार पहुंचते तक दोपहर हो गई. मिस बी के चाचा का घर पास ही था तो नमस्ते करनी जरूरी थी. मुलाकात हुई, चाय नाश्ता हुआ. बातों बातों में चाची ने मिस बी से पूछा - अरे तुझे इस दाढ़ी वाले पंजाबी में क्या नज़र आया ?

फिर टैक्सी स्टैंड की ओर बढे जहाँ जीप वाले आवाज़ लगा रहे थे - 'लैंसडोन लैंसडोन'. दरअसल जीप नुमा टैक्सी में बैठने का न्योता दे रहे थे. एक जीप में 6 की जगह 8-10 बिठा लेते हैं. मिस बी ने समझाया कि ऐसी टैक्सी में तभी बैठना चाहिए जब आपका मुंह सामने की ओर हो. अगर साइड में या पीछे की ओर मुंह कर के बैठेंगे तो चक्कर आ सकते हैं. और दूसरी लेडीज सवारी को मत देखना ज्यादातर ये उलटी कर देतीं हैं.
- ओह !
जीप की सवा घंटे की हिचकोले दार, घुमाव दार और शोर मचाती हुई पहाड़ी यात्रा भरोसा खाल में जाकर खत्म हुई. उतर कर देखा तो आस पास पहाड़ और जंगल के अलावा कुछ भी नहीं था.
- कहाँ है तुम्हारा गाँव?
- बस वो नीचे है. इस चीड़ के जंगल में से निकल चलते हैं.
जंगल छायादार, ठंडा और हरा भरा था. ऊपर नीला साफ़ आसमान, नीचे बड़े बड़े और ऊँचे चीड़ के पेड़ और पक्षियों के आवाजें. हवा की सुरसुराहट और जंगल की एक खास खुशबु भी आ रही थी. पैसा वसूल. जंगल की पगडंडी नीचे की ओर जाते जाते ख़त्म हो गई. पथरीली चट्टानें शुरू हो गईं. तेज़ धूप में चट्टानें तप रहीं थी. एक बड़ी चट्टान तो ऐसी थी कि उस पर हाथ रख कर ही उतरा जा  सकता था अच्छी सिकाई हो गई. मुझे लगता था कि चढ़ाई से उतरना बहुत आसान है पर उफ़.
- कहाँ है तुम्हारा गाँव?
- बस वो नीचे है.
दस मिनट तक नीचे उतरने के बाद 5-7 घर नज़र आये.
- ये है तुम्हारा गाँव?
- वो नीचे है. ये तो अमखेत है.
और दस मिनट पथरीली उतराई के बाद एक गाँव बांये हाथ पर नज़र आया.
- ये है तुम्हारा गाँव?
- वो नीचे है. ये तो गुन्याल की छाल है.
आखिर गाँव आ ही गया. पैरों के पंजे, पिंडलियाँ, घुटने और जांघों की मसल बुरी तरह दर्द कर रहीं थीं. पूरा शरीर पसीने पसीने हो गया था. चरपाई पर धम्म से बैठ गया और दो गिलास पहाड़ी पानी पिया तो कुछ चैन आया. कुछ ही मिनटों में गाँव के सारे बच्चे और बूढ़े चरपाई के इर्द गिर्द इकठ्ठे हो गए. सभी को मिस बी ने  ने गुड़ चने बांटे. कई बूढ़ी महिलाओं ने सर पर खुरदुरे हाथ फेर कर आशीर्वाद दिया
- राजी कुछल छो ? बनण्या रओ ! बनण्या रओ !
बच्चों ने बड़े कोतूहल से देखा नए रिश्तेदार को हाथ लगा लगा कर देखा. 
एक बुज़ुर्ग फौजी भी आ पहुंचे.
- जय हिन्द साब. पहली बार आये साब? सड़क नहीं है ना साब. थोड़ा थकावट हो जाता है साब. अभी दूर हो जाएगा.
यह कह कर फौजी ने मेरा गिलास उठाया और रम का बड़ा पेग बना दिया. दोनों ने चियर्स किया. थकावट से राहत मिली.

वो नीचे है मेरा गाँव 


  

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