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Sunday 17 January 2016

कसौली के क़िस्से

कसौली काफ़ी पुराना पर छोटा सा कैन्ट है जो अब जिला सोलन हिमाचल प्रदेश का हिस्सा है। शिमला से 77 किमी दूर, ठंडा और शांत पहाड़ी इलाक़ा है। वहाँ कुछ समय बिताने का मौका मिला और टाइम पास करने के लिए वहाँ के पुराने बाशिंदों से बातचीत हुई। तीन किस्से सुने जो पेश हैं पर पता नहीं कितने सच हैं।

# काला कुत्ता

कसौली में लोअर पाईन मॉल है जहाँ शापिंग के लिए तो कुछ नहीं था पर घूमते हुए नजर पड़ी एक पुरानी ख़स्ता- हाल लक्कड़ की इमारत पर जो अपने अच्छे दिनों का याद कर रही थी। उसके दाहिनी ओर एक शराब का ठेका था और उस ठेके के पीछे रसोई गैस की एजेंसी थी। ठेके के आगे एक चबूतरे पर काला कुत्ता बैठ था। ग़ौर से देखने पर पता चला कि कुत्ता नहीं कुत्ते की मूर्ति थी। 

कौतूहल वश ठेके में पूछा तो जवाब मिला 'ये काले पत्थर का कुत्ता तो अंग्रेज़ों के ज़माने का है'। उसके बाद आगे की दुकानों में पूछताछ की तो एक दुकानदार ने बताया की इस मकान के मालिक की किसी अंग्रेज़ से गरमा गरमी हो गई। अंग्रेज़ ने पिस्टल निकाल ली और मकान मालिक पर तान दी। फिरंगी के चिल्लाने और गुस्सा करने पर काला कुत्ता फ़िरंगी पर झपट पड़ा. फिरंगी ने गोली चला दी जो कुत्ते को लगी. काला कुत्ता गोली खाकर वहीँ मर गया पर मालिक बच गया । उस घटना की यादगार है ये मूर्ति। 

एक और दुकानदार का कहना था कि कुछ शरारती तत्वों नें ठेके में से शराब चुराई और ग़ल्ले में भी हाथ मारने की कोशिश की। खड़खड़ाने की आवाज सुनकर कुत्ता उन पर झपटा और वो चोर भाग लिए। सुबह कुत्ते की मदद से पकड़े गए और सज़ा मिली। बाद में इस कुत्ते की मूर्ति इंग्लैंड में बनवा कर यहाँ स्थापित की गई। वैसे भारत में कुत्ते की मूर्ती कहीं देखी  नहीं !

दोनों ही किस्से कुछ कुछ अधूरे से लगते हैं। हफ़्ते दस दिन के लिए दुबारा जा कर रिसर्च करनी पड़ेगी या फिर किसी न्यूज़ चैनल को सूचना देनी पड़ेगी !

लकड़ी का बना पहाड़ी स्टाइल का पुराना मकान 
स्थायी चौकीदार

# लोहे की संदूक

यह कहानी ऐसे शख्स ने सुनाई जिसका परिवार 1920 से कसौली में है इसलिए इस क़िस्से में कुछ तो दम होना चाहिए। क़िस्सा यूँ है कि कसौली से लगा हुआ एक गाँव था 'डार' जो अब पुरानी कसौली कहलाता है। इस गाँव में क़रीबन 75% मुस्लिम थे। 1947 में आज़ादी और बँटवारे की अफ़वाहों का बाज़ार गरम था। काफी मुस्लिम वहां से पाकिस्तान जाना चाहते थे. इन परिवारों ने अपने अपने ज़ेवरात पोटलियों में डाले और उन पर अपने नाम लिखे। पोटलियों को इकट्ठा कर के एक भारी भरकम लोहे की संदूक में रख दिया और बड़े से बड़े ताले लगा दिये। संदूक को खींच कर गली के एक कोने में सेट कर दिया और बटवारे के हल्ले में कालका-लाहौर रेलगाड़ी से कूच कर गए।  

कुछ दिन गुज़रे तो फिर से गाँव में फिर हलचल शुरू हुई। लोहे की संदूक ताश का टेबल बन गया और उसके इर्द गिर्द शराबी इकट्ठा होने लग गए। एक लाला ने दुकान खोलनी थी तो उसने मज़दूरों की मदद से संदूक को दस फ़ीट पीछे करा दिया। दूसरी दुकान खुली तो संदूक और आगे चली गई। तीसरी दुकान खुली तो और आगे चली गई। पर तीसरे लाला ने अपने लड़कों की सहायता से रात को संदूक खोल दी। 

कहते हैं तीसरे लाला जी बहुत जल्दी अमीर हो गए थे और कसौली छोड़ कर अम्बाला चले गए थे। 

पुरानी कसौली की पुरानी गलियाँ 

# पादरी और प्रॉपर्टी डीलर
कसौली का क्राईस्ट चर्च काफ़ी पुराना है। इसकी नींव 1840 में रखी गई थी और पहली प्रार्थना 24 जुलाई 1853 में कराई गई थी। कालांतर में रैव. रघुबीर मैसी को 1999-2002 के लिए क्राईस्ट चर्च का पादरी नियुक्त किया गया। पादरी रहते हुए रैव. रघुबीर मैसी ने चर्च के दो गोदाम, एक गेस्ट हाउस और एक सरवैंट क्वार्टर 60,000 ₹ लेकर श्री श्याम सुंदर को लीज़ पर दे दिये। पर पादरी ने ये पैसे चर्च के खाते में जमा नहीं कराए। 
श्याम सुंदर अग्रवाल रीयल इस्टेट एजेंट का बोर्ड अभी लगा हुआ है। 
और मुक़दमा भी जारी है। 

क्राईस्ट चर्च, कसौली


1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/05/blog-post_65.html